॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
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सोमवार, 7 जुलाई 2008

हकीकत या फ़साना,जीने का ढूढे बहाना


सिसकियां लेती है मन की वेदना
झुंझलाती रहती है अपनी चेतना

हर मोड़ पर दिखते हैं अब बिखरे कांटे
ना जाने क्यों दिल से दिल को हम बांटे

प्यार का करते रहते है हम सब ढोंग
लेकिन हैं दुश्मन एक दूजे के हम लोग

खून मानवता का अब और सस्ता हुआ
जीना बेसुध दुनिया में और महंगा हुआ

अंगड़ाई जोश की लेती तो है जवानी
स्वार्थ कि खातिर बन जाती नई कहानी

फ़ैशन बन कर अब विलुप्त हो रही खादी
मूक रहकर खुली आंख से देख रहे बर्बादी

कुछ हक़ीकत है, कुछ है फंसाना
फ़िर भी जीने का ढूंढ़े हम बहाना

-अस्तित्व, यू ए ई

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

कुछ हक़ीकत है, कुछ है फंसाना
फ़िर भी जीने का ढूंढ़े हम बहाना

-बहुत सही. लिखते रहिये.

बेनामी ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति। आपके ब्लोग में आता जाता रहता हूं। पंसद आया