॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
आपका स्वागत है मेरे इस ब्लोग में। आशा है आपको मेरे साथ आनन्द आयेगा। मेरा प्रयास रहेगा की आप की आशाओ में खरा उतरुंगा। सभी पढ़ने वालो को मेरा सप्रेम नमस्कार एवम् अभिनंदन। .

शनिवार, 8 दिसंबर 2007

तुम हो !!!!!

मेरे हर प्रश्न का उतर तुम हो
मेरे हर सपनों का अर्थ तुम हो
मेरे हर पल का साथ तुम हो
मेरी दौलत, मेरा प्यार तुम हो
मेरी हर इच्छाओं कि पूरक तुम हो
मेरे जीवन का हर अंश तुम हो
मेरी भावनाओं का भंडार तुम हो
मेरी हर पसंद की पंसद तुम हो
मेरी हर बात का मतलब तुम हो
मेरे जीवन की हर तपस्या तुम हो
मेरे आंगन की महक तुम हो
मेरे हर उजाले की रोशनी तुम हो
मेरी हर प्रेरणा का स्त्रोत तुम हो
मेरी सफलता का “अस्तित्व” तुम हो
(25-4-85)
- अस्तित्व

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2007

परिवर्तन

परिवर्तन संसार का नियम है। परन्तु क्या ये सत्य है? अगर सत्य है तो किस पहलू में? किस स्तर में? इसी कशमश में कुछ प्रशन अपने आप से पूछने में सोच को नया आयाम देते है?
परिवर्तन देश के विकास में, विज्ञान में,साहित्य में,आर्थिक दृष्टि से,सामाजिक कल्याण के संदर्भ में,खेल-कूद में या कहे की हर स्तर में अनिवार्य है। तभी हम प्रगतिशील कहलायेंगे। अपनी सोच में परिवर्तन लाना भी कहीं-कहीं उचित माना जाता है। विज्ञान और तकनीकी स्तर में तो हर रोज बदलाव आ रहे है। फैशन, फ़िल्म जगत और मनोरंजन जगत में भी इसमें पीछे नहीं। किसी क्षेत्र में तेजी से तो किसी में धीमी गति से।
कुछ मन में उठते सवाल
घर-परिवार में भी बदलाव आम सी बात हो गई। इक्का दुक्का परिवार ही संयुक्त परिवार कि श्रेणी मे आते है। लेकिन अब की पीढी अकेले ही अपनी मंजिल कि तलाश में अग्रसर हो रही है। क्या इस बदलाव से हम कुछ खो रहे है कुछ पाने की चाह में? क्या हम अपने संस्कारों में परिवर्तन चाहते है? क्या हम अपने वसूलो में बदलाव चाहते है? अगर आप सच बोलते है तो क्या परिवर्तन चाहते है? आप यदि सामाजिक कार्य करते है किसी लाभ की खातिर अपना रुख बदलना चाहेंगे। क्या आप प्रेम की अभिव्यक्ति बदलना चाहेंगे? व्यक्तिगत तौर से आप स्वंय में क्या बदलाव लाना चाहते है? क्या आप अपना द्दिष्टिकोण बदलना चाहते है? क्या आप अपने रिश्तों से मुंह मोड़ना चाहते है?

कुछ बदलाव ना चाहते हुए भी हमारे जीवन में आ जाते है। कुछ प्रश्न बिना उत्तर के ही रह जाते है। कभी-कभी उत्तर जानते हुये भी जबाब देना नही चाहते क्योंकि फिर हम खुद के भ्रमजाल में फ़स जायेंगे।

मेरे ख्याल में अपने आप में परिवर्तन अच्छाई हेतु, संस्कारों में बदलाव सामाजिक कल्याण हेतु एक अच्छा प्रयास होगा। सकारात्मक सोच के साथ किया हुआ हर परिवर्तन एक नई दिशा की ओर अच्छा प्रयास माना जायेगा।

- अस्तित्व

जिन्दगी का चित्रण

बिन्दु-बिन्दु से बनता जिंदगी का चित्रण
सजता उसमें हमारी आशाओं का दर्पण
करती उसमें इच्छायें स्वच्छंद विचरण
रंग जाते उसमें भिन्न- भिन्न प्रकरण

अन्तरात्मा का है जिसमें विवरण
भावों का रहता है जिसमें समर्पण
कर देते है उसमें सब कुछ अर्पण
खूबसूरती का रहता जिसमें आकर्षण

समेटे हुये जो सच का आवरण
करता है खुशियों का वितरण
प्रेम की खुशबू फैलती छ्ण-छ्ण
बोल पड़ता है जिसमें कण-कण

-अस्तित्व

बुधवार, 5 दिसंबर 2007

जब तुम आये!!

इंतजार में तुम्हारे
आंखो का पानी सूख चुका था
आज आंखे नम हो गई
जब तुम आये!!

दिल की धड़कन रुक सी जाती थी
जब याद तुमहरी आती थी
आज दिल कि धड़कन तेज हुई
जब तुम आये!!

चेहरा कुछ मुरझा सा जाता था
जब तस्वीर तुम्हारी औझल सी लगती थी
आज चेहरा मेरा गुलाल हुआ
जब तुम आये!!

लब मेरे थिरकते रह्ते थे
जब अह्सास तुम्हारा आता था
आज लब मेरे सहम गये
जब तुम आये!!

आसमां को निहारा करता था
जब तुम बिन तारे गिनता था
आज सारा जंहा मिल गया
जब तुम आये!!

- अस्तित्व

मंगलवार, 4 दिसंबर 2007

प्यार की राह में

प्रेम तपस्या में
लीन होकर जाना
कुछ हद तक
प्यार की भाषा को
और उसकी परिभाषा को

प्रेम एक
सम्बन्ध है
मेल है
दिल के तारो का
परस्पर स्नेह का
विचारो का
भावनाओ का

एक दूजे का
सहारा है प्यार
समर्पण और आदर का
सामंजय है प्यार

शायद इस दुनिया मे कई
प्रेम पुजारी है
फिर भी
प्रेमबन्धन मे पूर्ण नही

प्यार मोह्ब्बत के इस
मनचले खेल ने
"अस्तित्व" तुम्हें
बहुत कुछ सिखलाया है
और सिखा रहा है

अरे!!! ये किसकी आवाज है
जो चुपके से मेरे कानो मे
शहद घोल रही है और
अपने करीब बुला रही है

अच्छा मैं चला और कुछ
सीखने की चाह मे - प्यार की राह में।

-अस्तित्व