॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
आपका स्वागत है मेरे इस ब्लोग में। आशा है आपको मेरे साथ आनन्द आयेगा। मेरा प्रयास रहेगा की आप की आशाओ में खरा उतरुंगा। सभी पढ़ने वालो को मेरा सप्रेम नमस्कार एवम् अभिनंदन। .

शुक्रवार, 4 जनवरी 2008

सहारा मिला जब………




दुनिया की करने चला मैं सैर
चलने लगे खुद ब खुद मेरे पैर
कुछ मिले अपने कुछ मिले गैर
कुछ से दोस्ती कुछ से लिया बैर

रंगीन दुनिया में कुछ ढ़ूढ़ने लगा
याद आये सब, खुद को भूलने लगा
सच और झूठ के बीच पिसने लगा
जीवन जीतने लगा, मैं हारने लगा

पाने की चाह में, कुछ खोने लगा
मैं जागता रहा, दिल सोने लगा
कल लुटता रहा, आज जाने लगा
कर्म करता रहा, धर्म भूलने लगा

समझ पाया न सत्य इस जीवन का
ढ़ूँढ़ने लगा मार्ग मन की शांति का
पाया सहज रास्ता ईश्वर की भक्ति का
सहारा मिला जब प्यार की शक्ति का


- अस्तित्व

बुधवार, 2 जनवरी 2008

याद तुम्हारी….………




अंगडाई लेती पुरवाई लेकिन
याद तुम्हारी ले आई

तन से कोसो दूर लेकिन
मन के बहुत करीब

आती शरमाती हुई लेकिन
कमर बल खाती हुई

खामोशी छाने लगी लेकिन
दिल शरारत करने लगा

संभलने लगे अहसास लेकिन
गर्म होने लगी साँस

पलके झुकने लगी लेकिन
होंठ थिरकनें लगे

मुझ को होश नहीं लेकिन
धड़कने बढ़ने लगी

शाम ढ़लने लगी लेकिन
रात जवाँ होने लगी

सपने पूरे होने लगे लेकिन
हकीकत समझ आने लगी

हम तुम बिछड़ने लगे लेकिन
याद तुम्हारी फिर आने लगी।
-अस्तित्व

मंगलवार, 1 जनवरी 2008

फिर क्या बदला?


नई सुबह, नया दिन
बीत गये कुछ लम्हे
अब रात होने को आई
क्या अलग था कल से
सोचने लगा इस शाम से

कुछ भी नहीं बदला
क्या बदला मैं?
क्या बदले तुम?
क्या बदल गये वो?
बदला तो क्या बदला?

दिन वही, रात वही
फिर क्या बदला?
तुम वही, मैं वही
फिर क्या बदला?
भूख वही, प्यास वही
फिर क्या बदला
हँसी वही, आँसू वही
फिर क्या बदला?
ईर्ष्या वही, प्यार वही
फिर क्या बदला?
रिश्ते वही, नाते वही
फिर क्या बदला?
दर्द वही, पीड़ा वही
फिर क्या बदला?

रात की काली स्याही में
सुबह की उभरती लाली में
शायद सुबह कुछ बदल जाये
इसी आस में कल के इंतजार में
-अस्तित्व



सोमवार, 31 दिसंबर 2007

जीवन अतुल्य है………

जीवन अतुल्य है्। जीवन जीने की राह एक कठिन मगर अपने में उस जीवन को जीने की चाह और उसको अपने कर्तव्य मार्ग से जोड़ सकती है या फिर भटका सकती है। यथाशक्ति व मन से किया हुआ हर कार्य जरूर एक मंजिल की ओर अग्रसित करता है।
मन की भावना और शक्ति एक ऐसी राह की ओर बढती जाती है जिसमें अवश्य ही विजय निश्चित होती हाँ अगर भाग्य ने साथ दिया तो अवश्य ही अजेय घोषित होंगे।
मेरा मानना है कि मनुष्य के कर्म अवश्य ही आज को एक रुप देते है।लेकिन विजय और हार उस उपर वाले के हाथ है जिसे हम भगवान, अल्लाह या फिर जीसस के नाम से जानते है। ईश्वर जो करता है अच्छे के लिये करता है। लेकिन हम लोग आज को समेटने की कोशिश केवल अच्छे के लिये करते है। अगर हम लोग अपने को भूल कर को केवल आज को एक सुनियोजित ढ़ग से जीने की राह पकड़ ले तो आज को हम जी पायेंगे। कल की चिंता अवश्य ही हमें एक ऐसी उधेड़-बुन में डाल देती है की हम आज को ठीक से नही जी पाते है। आज को हम सफल बनाये इसी में ही हमारी खुशी है।अगर एक पल के लिये मान ले कि आज हम प्रारब्ध का फल पा रहे है अच्छा या बुरा तो क्यों ना हम आने वाले कल के लिये आज को अच्छा करे। आज को जी ले आज को अपने लिये और दूसरों के लिये अच्छा करें।

हर मनुष्य अच्छी सोच के साथ जीवन के लम्हों को जीना चाहता है केवल उसकी नकारात्मक और धनात्मक सोच ही उसके कल को बनाती है। एक दोहा याद आता है
“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल मे प्रलय होयेगी बहुरी करेगा कब”
आज को सुन्दर बनाये कल की चिंता कल के लिये छोड़ दे।

साल 2008 में और आने वाला हर पल आपको सफल और स्वस्थ रखे खुशियों के साथ इसी शुभकामनाओं के साथ
आपका अस्तित्व

रविवार, 30 दिसंबर 2007

आज की बात………

आज की बात………

नये साल कि सुगबुगाहट के शुरु होते ही वातावरण इसके इर्द-गिर्द घूमने लगता है। चाहे इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या प्रिन्ट मीडिया हो सब मिल जुट कर इसको प्रोत्साहित करते है। हम सब लोग इससे अछूते नही है। शुरु हो जाती है बधाई संदेशों की भरमार अपने ही अंदाज़ में। हिन्दुस्तानी कहीं भी हो भारत में या भारत से बहार, शायद अपने नववर्ष को इतनी अहमियत नही देते है या इस रुप में नही मनाते है। लेकिन पश्चिम की इस रीत को आसानी से अपने जीवन धारा में ढ़ाल चुके हैं। खैर इस बात को एक नये शीर्षक के साथ शुरु किया जा सकता है। अभी तो केवल नये साल की बात के साथ ही रहना चाहते है।

कुछ कल की बात करते है और कुछ आने वाले कल की बाते। कुछ लोगो को नसीहत देते हुए कुछ खुद को सुधारने की कसमें खाते हुये। कुछ समाज की बात करते हुये नही थकते तो कुछ समाज की ख़ामियाँ गिनाते हुये देखे जा सकते है।

अतीत की बातें हमेशा ही कचोटती है जिनसे स्वयं को, समाज को या राष्ट्र को हानि पहुँची हो। शायद यही वक्त होता है विचार मंथन का, फिर इससे सबक लेने का या इनसे उबरने का या फिर इसमें संशोधन करने का। सामने होता है लेखा जोखा जिसमे बस रहता है क्या खोया क्या पाया। वक्त के थपेड़े भी आने वाले कल की बुनियाद लिख जाते है, और आईना बन जाते है हमारे भविष्य का।


लेकिन क्यों ना आज एक ही वादा करें अपने आप से की स्वयं को पहचाने। हम अपने आप को निष्ठापूर्वक अपनी ही नज़रो में सभ्य, सशक्त, और श्रेष्ठ बनाये। आप योग्य तो परिवार समर्थ , परिवार समर्थ तो समाज प्रबल, अगर समाज प्रबल तो राष्ट्र महान। एक सुनहरे भविष्य की और स्वयं का पहला कदम।