- अस्तित्व
शनिवार, 22 दिसंबर 2007
गुदगुदाती तस्वीरे
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शनिवार, दिसंबर 22, 2007 1 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007
हर सफलता के पीछे………।
मन मस्तिष्क के सौजन्य से निकलते विचार कोरे पन्नो पर कलम के सहारे अचानक ही उभर जाते है। ना बोध रहता है ना ही संयम, बस नज़र आते है तो केवल अक्षर जो उन कोरे पन्नो पर एक छाप छोड़ जाते है। फिर होता है विश्लेषण सही और गलत, सामाजिक और असामाजिक, बुरा और भला। कुछ बाते प्रासंगिक लगती है कुछ सत्य से सामना कराती हुई, कुछ हंसी से ओत- प्रोत, कुछ मन में पीड़ा, कुछ प्रेम का अहसास दिलाती हुई, कुछ सिखलाती हुई, कुछ अपने आप को झंझोड़ने के लिये काफी होती है। लिखना और उसको पढ़ने लायक स्वरूप देना या पढ़ने वालो को जिज्ञासा दिलाना ही लेखक की सफलता है।
शौक तो था लिख्नने का, खेल का और अभिनय का। सभी में अपनी मौजूदगी दर्ज भी कराई। लेकिन किसी छेत्र में स्वंय को परिपूर्ण नही पाया। जब मैं छात्रावास में रहता था सन 1983-85 की बात है कभी- कभी अकेलेपन को दूर करने के लिये मन उठते भावों को फिर से लिखना शुरु कर दिया। कई पन्ने लिखे , कितने पन्ने फाड़े और कुछ पन्नो को आज भी संजो कर रखा है। फ़िर जब 1987 मे यू ए ई में आना हुआ तो भी वही अकेलापन फिर से लिखने के शौक को चिंगारी दे गया। आज भी डायरी के पीले होते हुये पन्ने उस दौर को याद दिलाते है।
फिर सन 1993 में एक अध्याय जुड़ा जब मैं प्रणय-बन्धन मे बंधा। उस वक्त भी कलम उस अहसास को लिखती चली गई। मेरे इसी प्यार ने समय समय पर मुझे प्रेरित किया क्योंकि उसे लगता था कि मैं लिखने की इच्छा रखता हूँ और प्रेषित कर सकता हूँ पर शायद कभी उसकी इस भावना को एक स्थान न दे सका। फिर काम और वक्त ने भी मुझे इससे दूर रखा। लेकिन उसके विश्वास का नतीजा है कि आज मैं कुछ आप लोगो तक पहुँचाने मे सक्षम हुआ हूँ। उसकी खोज और इस ब्लोग का स्तर और भिन्न-भिन्न चिट्ठे ने उसके विश्वास को एक नई दिशा दी जिसे मैंने भी स्वीकार किया और बना डाला ब्लोग। आज भी वक्त और काम उसी स्तर पर है या कहे कि अधिक है लेकिन फ़िर भी मन नही मानता बिना लिखे हुये। लेख कविताये कैसी होंगी वो तो आप लोग ही निर्णय लेंगे,लेकिन एक बात तो सत्य है कि हर सफलता के पीछे नारी का हाथ होता है। मैंने इसे समय - समय पर मह्सूस किया है। आप सहमत हैं क्या ?
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, दिसंबर 21, 2007 2 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 20 दिसंबर 2007
आज फिर उनको ………
सपने में आकर चुपके से मुझे जगाया
कहने लगी भूल जाओ कल की कहानी
चलो शुरु करे अब फिर एक नई कहानी
अपना सहारा तुम्हें बनाना चाहती हूँ
तुम को अपना प्यार बनाना चाहती हूँ
तुम ही तो हो मेरे श्रृंगार – दर्पण
करती हूँ मैं तुमको सब कुछ अर्पण
आज फिर मुझे सीने से लगा लो
अपने रूठे दिल को फिर से मना लो
अब कर ना सकूँगी और इंतजार
खड़ी हूँ लेकर मैं फूलो का हार
आज फिर उनको हमारा ख्याल आया
सपने में आकर चुपके से मुझे जगाया
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर गुरुवार, दिसंबर 20, 2007 0 टिप्पणियाँ
बुधवार, 19 दिसंबर 2007
ईद मुबारक……॥
आज ईद है( संयुक्त अरब अमीरात में)। मस्जिदों से आते आहवान के घोष, प्रार्थनाओं के दौर और शोरगुल ने ईद के माहौल की घोषणा कर दी। सभी मुस्लिम भाई-बहनों को ईद के शुभ अवसर पर ढेर सारी बधाई।
यहाँ पर तो ईद का माहौल पिछले दो-तीन दिनो से देखा जा सकता था। छुट्टियों का ख्याल आते ही सभी के लिये त्यौहार एक नई उमंग और खुशी लेकर आता है। सभी एक दूसरे से मिलने, घूमने-फिरने, बच्चों के लिये खेलने-कूदने और बाज़ार करने का भरपूर आनन्द उठाते है। इसका असर सड़को पर, शॉपिंग माल, समुद्र के किनारे, पार्कों में और रेस्टोरेन्ट में देखा जा सकता है। लोग रोज की दिनचर्या को एक किनारे रखकर इस अवसर को जीना चाहते है।
यू ए ई मे अब सभी सरकारी संस्थान रविवार को खुलेंगे। स्कूली बच्चे तो अब नये साल में ही स्कूल का रुख करना होगा। तब तक…………। दिसम्बर महीने मे यू ए ई में काफी चहल पहल है और रहने वाली है इसकी शुरुआत हुई राष्ट्रीय दिवस(2 दिसम्बर) से और अब ईद, फिर क्रिसमस, नया साल और साथ ही शॉपिंग त्यौहार की शुरुआत हो चुकी है।
कुल मिलाकर भरपूर मस्ती और आनन्द का माहौल।
आइये आप सब लोग भी इस खुशनूमा माहौल का आनन्द का उठाईये। हर चिंता को भूल जाइये और त्यौहार के मौसम में अपने आप को ढ़ाल लिजिये। इसके साथ ही आप सबको ईद, क्रिसमस और नये साल की बधाई।
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, दिसंबर 19, 2007 4 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 18 दिसंबर 2007
सोमवार, 17 दिसंबर 2007
हिन्दुस्तान हमारा है
हिन्दुस्तान कशमशा रहा है
भारत माँ के अंगो पर
ये कैसा नासुर फैल रहा
देव भूमि पर
कैसा तांडव हो रहा
रंगों की होली छोड़ कर लोग
क्यों खून की होली खेल रहे
एक हमारी संस्कृति सबकी
भारत माँ के बच्चे हम सब
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
फिर बना है दुश्मन क्यों भाई - भाई
आज माँ बिलख रही
अपनी ममता का हिसाब मांग रही
आओ अपनी सोच को
एक नया मोड़ दे
दुश्मनों को जबाब मुँह तोड़ दे
एक आवाज़ सबकी हो
हिन्दुस्तान हमारा है।
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, दिसंबर 17, 2007 1 टिप्पणियाँ
उनकी Yaad
उनकी याद्…………
क्षितिज की ओर निहारती नज़रे
शांत समुन्दर की मस्त लहरे
बरबस ही उनकी याद दिला जाती है
उनको भूलने की नाकाम कोशिश
फ़िर मन में एक आस जगा जाती है
मन फ़िर मन नहीं रहता
प्रेम में वशीभूत हो जाता है
आसमान की उँचाईया छूने लगता है
प्यार कि खुशबू महकने लगती है
सांसे कुछ तेज चलने लगती है
बंद आँखे प्यार का लम्हा जीने लगती है
होंठ उनके नाम से कंपकपाने लगते है
अहसास फिर से मचलने लगते है
उनकी याद आज भी
अपने करीब ले जाती है
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, दिसंबर 17, 2007 1 टिप्पणियाँ