॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
आपका स्वागत है मेरे इस ब्लोग में। आशा है आपको मेरे साथ आनन्द आयेगा। मेरा प्रयास रहेगा की आप की आशाओ में खरा उतरुंगा। सभी पढ़ने वालो को मेरा सप्रेम नमस्कार एवम् अभिनंदन। .

रविवार, 17 मई 2009

चुनाव विश्लेष्ण मेरी नज़र में…




कान्ग्रेस को बधाई इस चुनाव में। सभी बहुत खुश है ( कान्ग्रेस पार्टी का तो क्या कहने)। खुशी की बात हमारे लिये यह भी कि स्थाई सरकार रहेगी। पर क्या सही में ये जीत राहुल, सोनिया या मनमोहन सिह के कार्य की। बिल्कुल नही। इनको फ़ायदा मिला
1) मुस्लिम वोटो का ध्रुवीकरण ( खासकर यू पी में) और सपा का अलग से चुनाव लड़ना। बी एस पी से लोगो का गुस्सा। भाजपा को अपना वोट तो मिला पर बाकी तथ्य उसको ले डूबे यू पी में
2) राजस्थान मे भाजपा का सत्ता मे न रहना और कुछ अन्दरूनी लड़ाई।
3) दिल्ली मे मुद्दे ना के बराबर। बस शीला की राजनीति रगं लाई और भाजपा का ऐसे लोगो को खड़ा करना जिनका अस्तित्व अब खतम है।
4) महाराष्ट्र मे एम एन एस का वोट काटना ( मूल कारण)
5) उड़ीसा मे पटनायक की चतुरता और भाजपा का अधिक आत्मविश्वास ( लेकिन बन गय मुद्दा कन्दमाल) इसे ही कह्ते है राजनीति।
6) कुछ एक जगह पर राज्य सरकार के खिलाफ जैसे मध्यप्रदेश
7) हरियाणा और पन्जाब में साथियो का बेकार प्रदर्शन और सिख प्रधानमन्त्री का चयन कान्ग्रेस द्वारा जिसे लोगो ने समर्थन दिया।
8) दक्षिण में भी थोड़ा आश्चर्यजनक नत्तीजे ( कान्ग्रेस भी सोच मे है कैसे?)

बाकी भाजपा शासित राज्यों मे लोगो ने समर्थन भाजपा को दिया कार्य कि वजह से।

कुछ मुद्दे जो भाजपा के विपक्ष मे गये।
1) साम्प्रदायिकता का मुद्दा । मुझे याद है कि घोषणा पत्र जारी करते हुये केवल अन्त मे था राम मन्दिर के लिये लेकिन मीडिया और कान्ग्रेस ने पूछ्ना शुरु कर दिया अब किसी ने तो इसी को उछाला। हां वरुण का बयान ने किसी हद तक लोगो मे रोष पैदा किया लेकिन फ़िर मिडिया ने इसे बहुत उछाला।
2) मोदी का नाम : अरुण शुरी ने अपनी राय मे जब कहा कि मोदी एक सक्षम नेता है और आगे प्रधानमन्त्री बन सक्ते है। बस मीडिया ने सब्से पूछना शुरु कर दिया और जिसने कहा कि हां मोदी आगे हो सक्ते है तो मिडीया ने इस्को उछाल दिया और कान्ग्रेस ने इस्का फायदा उठाया। फ़िर मीडिया ने इस पर पूछ्ना शुरु किया कि इस वक्त मोदी क नाम क्यो? अब कोई क्या जबाब दे इस बात का।
3) अगर लोगो की सोच ये है कि विकास, गरीब और कृषि मुद्दा है तो फ़िर सब को भाजपा गठ्बन्धन को ही मौका देना चाहिये था: बिहार, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तराखडं, हिमान्चल, छतीशगढ और झारखंड इत्यादि राज्यों मे जो विकास और कार्य हुये है इसका असर होना चाहिये था जो नही हुआ।


एक मुद्दा और कान्ग्रेस ने उठाया: अपरहण और जस्वन्त सिह का जाना। उन लोगो के परिवार से किसी ने नही पूछा जिनके लोग की जान बच गई या उनके परिवार वालो से पूछा किसी ने। फ़िर मुफ़्ती सईद की बेटी को मुक्त कराने के लिये क्या किया। भिन्ड्र्वाला को किस्ने बनाया? जम्मू कश्मीर मे आन्तकवाद किस्का कसूर है। आतंकवादी घट्नाये( जैसे सन्सद मे) होती रहती है। लेकिन अफ़्जल गुरु को फासी क्यो नही? इसका जबाब कौन देगा?
गुजरात दन्गो का : केवल मोदी को इसी कारण से लताड़ना। गलत हुआ जो हुआ लेकिन उसके कार्यो को अनदेखा करना केवल इसी कारण से? फ़िर 1984(इसमें कोई शक नही की कान्ग्रेस ही जिम्मेदार है) का उल्लेख के लिये भाजपा और अन्य लोगो से क्यो प्रश्न ?


भारत से बहार रहनें से हमारा हक खतम हो जाता है वोट के लिये लेकिन देश के प्रति भाव और उसकी प्रगति में अपनी राय रख सक्ते है। इसलिये इस के माध्यम से केवल ये भ्रम दूर करना चाहता हू कि कान्ग्रेस की जीत राहुल के या सोनिया या मनमोहन सिह के कार्य या सोच की नही है जिसे सब लोग बयान कर रहे है। या कुछ बातो से लोगो को भ्रमित किया गया कान्ग्रेस या मीडिया के द्वारा। मीडिया का उल्लेख जरुरी है क्योंकि आज येसि ही बाते उनके लिये जरुरी है BREAKING NEWS। एक उदाहरण और – मनमोहन सिह को पूछा कि आपने अड्वाणी के बारे मे……… मनमोहन जी ने कहा की मैने 30 मिनट बात की जिसमें सभी कार्यो क जिक्र किया और आपने इसी बात को उछाला कि मैने अडवाणी को क्या कहा। अभी एक चैनल मे देखा कि शरद पवार ने कहा कि मोदी का नाम बीच मे…… मैने सुना कि जब सवान्दाता ने पूछा कि क्या आप सोचते है कि मोदी का नाम भारी पडा? खबर को सही रुप मे प्रस्तुत करना भी कला है लेकिन केवल नाम के लिये नही। अब इसमें शरद साहब क्या कहते भला इसके अलावा ये नही होना चाहिये था। Breaking news : blaming game started by NDA. एक हद तक मीडिया ने Breaking news के नाम पर भाजपा का विरोध किया। भाजपा भी दोषी है कि कुछ हद तक की कार्यो को भुना नही पाई, मनमोहन के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी और वरुण ( जबकि भाजपा ने विरोध जताया पह्ले फ़िर मीडिया ने कुरेदना शुरु किया और एन एस ए लगना आदि शामिल है इसमें)।
हारे हुये सभी लोग हार की समीक्षा करेगे ही बस मेरा विश्लेषण आप लोगो के साथ अपने विचार - हार के कारण ।

सोमवार, 4 मई 2009

आखिर कब तक?



कर्म करता जा
फ़ल की चिंता मत कर
फूल बिछाता जा
चाहे राह में कांटे मिले
आखिर कब तक?

दूसरा गाल आगे करो
जब कोई गाल पर चांटा मारे
प्यार करो उनको
जो नफ़रत से पेश आये
आखिर कब तक?

अतिथि देवो भव:
चाहे तिरस्कार उनसे मिलता रहे
अहिंसा परमो धर्मा:
चाहे नर संहार कोई करता रहे
आखिर कब तक?


कर्म करो हर आस तक जब तक फ़ल मिले
फूल बिछाओ जब तक कांटो से सामना न हो
गाल पर तमाचा जब तक आप ग़लत हैं
प्यार करो जब तक नफ़रत से सामना ना हो
अतिथि का सत्कार जब तक सत्कार मिले
अहिंसा तब तक जब तक बेक़ुसूर ना मरे

- अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

परिवर्तन संसार का नियम है



परिवर्तन संसार का नियम है
नियम तोड़ने के लिये ही बनते है
तोड़ना या तोड़ – फ़ोड़ जुर्म है
जुर्म की कोई न कोई सज़ा है
सज़ा जुर्माना हो या फ़िर कैद
कैद में जानवर हो या फ़िर इंसान
इंसान अच्छा हो या बुरा
बुराई का छोड़ दो अब दामन
दामन किसका पकड़े या छोड़े
छोड़ ना देना साथ तुम मेरा
मेरे हो या अपने कैसे पहचाने
पहचान थोड़ी हो या गहरी
गहराई का है क्या कोई पैमाना
पैमाना चाहे अब कुछ परिवर्तन
परिवर्तन संसार का नियम है।

-अस्तित्व , आबू दाबी, यु ए ई

रविवार, 29 मार्च 2009

चुनाव मेरे विचार


चुनाव आने वाले है। सभी पार्टियाँ इस माहौल को अपने पक्ष में करने के लिये उतावले है। कोई मौका नहीं छोड़ते है एक दूसरे के टांग खीचने के लिये। हर मीडिया भी अपने तरीके से हर छोटी मोटी घटनाओं को उछाल कर अपने चैनल को अग्रसर करने की कोशिश में लगे है।
वरुण गांधी एकाएक हिन्दुस्तान की राजनीति में एक अहम व्यक्ति बन गये है। कांग्रेस ने चाहा तो कुछ और था, लेकिन हो गया कुछ और। यू पी ए बिखर तो रहा है लेकिन मुख्य लड़ाई तो बी जे पी( एन डी ये) से है। साम्प्रदायिक मुद्दा तो यू पी ए का एक षड्यन्त्र है लोगो को गुमराह करने के लिये। आग तो कांग्रेस ने लगाई हुई है। शुरु से ही मुसलमान समुदाय को एक वोट बैंक कि तरह इस्तेमाल किया है। तो फ़िर भा ज पा ने हिन्दू कार्ड खेल कर इस को तूल दिया। कश्मीर मे आतंकवाद हो या पंजाब में भिन्डरवाला का जन्म हो या फ़िर आतंकवादियों को छोड़ने( महबूबा) की , या फ़िर आन्तकवाद का शिकार(इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी हत्याकांड) या फ़िर 1984 के दंगे हो, इन सब को कांग्रेस ने जन्म दिया या उनके कार्यकाल में हुआ। फ़िर किस आधार पर भा ज पा पर आरोप लगाया जाता है( पार्लियामेन्ट पर हमला, आतंकवादियों को छोड़ना) लेकिन अगर कोई पूछे की इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी हत्याकांड किस दौर मे हुआ।
आतंकवादियों को छोड़ना – जरा पूछो उन लोगो से और उनके रिश्तेदारों को जो खुद को और अपने सकुशल लौटने से खुश है। कहना और इलज़ाम लगना अति आसान है। ज्यादातर शासन कांग्रेस ने किया है तो फ़िर दुबारा गरीब और उनकी सहानुभूति बटोरने का अधिकार क्यों? मंदिर – मस्जिद का मुद्दा भाजपा की सियासी मज्बूरी है। पर एक बार एन डी ये सरकार बनाती है तो यकीन मानये ए सब मुद्दे ठन्डे बस्ते में ही जायेंगे।
अगर नेताओं की बात करे( कुछ एक हार्डलाइनर को छोड़ कर) तो भाजपा में ही कुछ येसे नेता है जो देश की उन्नति में एक अहम भूमिका निभा सकते है।
कुछ लोग ( प्रोफ़ेसिनल) इस चुनाव में अपने भाग्य आज़मा रहे है। लेकिन क्या देश की राजनीति में उनकी जगह है या वो कोई बदलाव ला सकते है या फ़िर कितने सालों में?
हम सब लोग इस पर एक ऐसी भूमिका निभा सकते है। वोट करे और ध्यान रखे की कौन सही व्यक्ति इस देश को सही दिशा दे सकता है अगर वो एक विशेष पार्टी से सम्बन्ध रखता है या प्रतिनिधित्व करता है( जो कि सरकार बनाने मे अहम भूमिका निभा सकता है)।
हमारे वोट करने वालो को सोचना चाहिये की वो इस चुनाव प्रक्रिया मे भाग ले ना की छुट्टियॉ में तब्दील करे। और एक स्वच्छ, ईमानदार( मुश्किल है पर दूसरे से अच्छा) और जिसे देश और दुनिया की फ़िक्र है, उसे ही वोट करे। सभी पढे लिखे वर्गो को इस प्रक्रिया में भाग लेना चाहिये और येसे व्यक्ति या पार्टी को अपना वोट दे जो सही मानो मे देश की उन्नति में या देश की समस्याओं को सुलझाने में योगदान दे सके।

मै तो आबू दाबी में कार्यरत हूं सो केवल विचार व्यक्त कर सकता हूं। लेकिन देश की प्रगति की ओर एक सवेंदशील हूं। मेरे विचार में शायद किसी पार्टी को थोड़ा भाव दे रहा हूं लेकिन ये केवल मेरे अपने विचार है क्योंकि मै समझता हूं इस प्रारूप में कुछ श्रेष्ठ लोगो को या पार्टी को मौका मिलना चाहिये।

जय हिन्द!!!!

अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

उनके दीवाने है हम


उनकी नज़र के दीवाने है

बस दीदार को तरसते है

आँखे बरबस उनको ढूंढती है

वो देखकर भी गुम हो जाती है



तन्हाई उनको पसंद है

मुझे उनका साथ पसंद है

यकीं है हमे कुछ ये भी

दिल में है कुछ उनके भी



छुप कर हमें खोजती है

खोज कर कुछ सोचती है

जाने क्या वो सोचती होगी

ढूढने के बहाने खोजती होगी



ये सफर रुकने न देंगे

यूँ ही हम चलते रहेंगे

ना जाने किस मोड़ पर

वो बन जाए हम सफर



-अस्तित्व , आबू दाबी