तुम मिले तो मेरे हालात बदलते चले गये
यूँ मिलते जुलते अहसास बदलते चले गये,
तन्हाई को मेरी हमसफ़र तुम सा मिल गया
जीने को मुझे सहारा अब तुम सा मिल गया
तुम्हारी झुकी पलकों के आशिक हम बन गये
चलते चलते इस राह मे हमराही हम बन गये
रात की खामोशी हो या हो दिन कि चंचलता
प्यार का अशियाना तुम्हारी बातो से है बनता
लेकर हाथो में हाथ हर पल रहता है तुम्हारा साथ
बन जाती है बिगडी बात जब रहती हो तुम साथ
- अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई
शनिवार, 24 नवंबर 2007
तुम जो मिल गये !!!!!!
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शनिवार, नवंबर 24, 2007 3 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 23 नवंबर 2007
~ तुम बिन ऐसे जिया तरसे ~
क्षितिज में जैसे जमीं आसमान का मिलन
आसमां में जैसे चांद और तारों का मिलन
धूप - छांव जैसा सुंदर खेल
सागर में जैसे नदिया का मेल
फूलो से जैसे खुशबू महके
आग से जैसे शोले दहके
ओस के जैसी छूती कोमलता
झरने के जैसी बहती चन्चलता
दिये की जैसी रोशनी बिखरती
ज्वार - भाटा जैसी लहरे उठती
बरखा की रिमझिम बूंदे बरसे
तुम बिन ऐसे जिया तरसे
अस्तित्व, आबू दाबी
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, नवंबर 23, 2007 0 टिप्पणियाँ
~ रचनाकर के रंग ~
जीवन की संरचना में,
कौन है रचनाकर ?
कैसे इस रचना को
रच देता है रचियेता ।
हर रंग से वशीभूत होकर,
भर देता है रंग रचियेता
हर एक भिन्न - भिन्न है,
रंगो का मिश्रण भी अलग है,
सबके जीवन में रंग अलग है,
हर रंग का आकर्षण अलग है,
जीवन की संरचना में,
कौन है रचनाकर ?
रचियेता की रचना में
रंग की अखरता में,
रंग की सरलता में,
रंग की सहजता में,
रंग की विभिन्नता में,
रंग की एकता में,
रंग की भावना में,
रंग की ताकत में,
बदल जाता है,
हर रंग का मतलब ।
जीवन की संरचना में,
कौन है रचनाकर ?
धूप छांव के रंगो में,
इन्द्रधनुष बन जाते है ।
रंग से रंग मिल जाते है,
जीवन से जीवन मिल जाते है ।
रचनेवाला छोड़ जाता है,
हर रंग का रंग जीवन भर ।
जीवन की संरचना में,
कौन है रचनाकर ?
अस्तित्व, आबु दाबी, यु ऐ ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, नवंबर 23, 2007 1 टिप्पणियाँ