॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
आपका स्वागत है मेरे इस ब्लोग में। आशा है आपको मेरे साथ आनन्द आयेगा। मेरा प्रयास रहेगा की आप की आशाओ में खरा उतरुंगा। सभी पढ़ने वालो को मेरा सप्रेम नमस्कार एवम् अभिनंदन। .

मंगलवार, 25 दिसंबर 2007

वेदना




आँखों का पानी
कंपकंपाते होंठ
चुभते शब्द

रुठती जिन्दगी
रुलाते पल
अचेत प्राण

सुलगती चेतना
तरस खाती निगाहें
विमुख होती आस

बेरुखी रात की
निराशा दिन की
नीरसता सावन की

दु:खती रग
व्याकुल भाव
बुझती शान


बयां करते है
सहमे जज्बात
दिल का दर्द
अंतरमन की वेदना


- अस्तित्व

4 टिप्‍पणियां:

मीनाक्षी ने कहा…

आपकी रचना में हर शब्द और वाक्य में वेदना भरी है...भावपूर्ण रचना

Unknown ने कहा…

कविता के प्रत्‍येक शब्‍द, प्रत्‍येक पंक्ति पढ़कर वेदना का अहसास है। यही सफलता का मापदण्‍ड है। वेदनापूर्ण सुंदर कविता के लिए बधाई।

anuradha srivastav ने कहा…

इतनी वेदना भी उचित नहीं । अब इससे उबर जाईये।वैसे दिल को छूने वाली रचना है।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना है।