॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
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बुधवार, 30 जुलाई 2008

आईना



जिंदगी का आईना
हर वक्त बदलता है
आईने के सामने
बनाते बिगाड़ते चेहरे
कल के चेहरे में
आज का रंग भर देते हैं
कल की पहचान बना देते है

आईना झूठ नहीं कहता
चेहरे का सच हम जानते है
फिर भी कल को छोड़
कल को देखते है
आज की तस्वीर बनाते है
कल को बदलने की चाह में
आइने में आज संवारते है

आईने की सच्चाई
मन में फ़िर भी रहती है
झूठ को कचोटती है
लेकिन सच को छुपाती है
फिर आँखे मूँद सपने सजते है
प्रशन भी आज उठते है
हकीकत किस से छिपा रहे हैं?

-अस्तित्व, यू ए ई

3 टिप्‍पणियां:

vipinkizindagi ने कहा…

bahut sundar .............
bahut achchi..........

बालकिशन ने कहा…

बहुत खूब.
बेहतरीन और उम्दा.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बेहतरीन लिखा है-

आईने की सच्चाई
मन में फ़िर भी रहती है
झूठ को कचोटती है
लेकिन सच को छुपाती है
फिर आँखे मूँद सपने सजते है
प्रशन भी आज उठते है
हकीकत किस से छिपा रहे हैं?