॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
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शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?




लगते अपने हो फ़िर भी अनजाने हो
कोशिश करता हूं तुमको अपनाने की
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?

सामने आते हो तो पहचान नहीं पाता हूं
दूर तुम हो तो पहचान कर नहीं पाता हूं
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?

मिलने की ख्वाईश अधूरी है
तुम से मिलना भी जरूरी है
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?

मिल कर अब हाथ बढ़ाये
एक दूसरे का साथ निभाये
हम तुम कौन है इसे पहचाने



-अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई

6 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आज आप के ब्लॉग पर आना हुआ . बहुत अच्छा लगा यहाँ आ कर...आप बहुत सधे हुए शब्दों में अपनी बात कहते हैं...आप की ये रचना भी अन्य की तरह बहुत खूबसूरत है...बधाई...
नीरज

बेनामी ने कहा…

सामने आते हो तो पहचान नहीं पाता हूं
दूर तुम हो तो पहचान कर नहीं पाता हूं
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
bahut sundar bhav badhai

डॉ .अनुराग ने कहा…

तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
well said......

prabhat gopal ने कहा…

मिल कर अब हाथ बढ़ाये
एक दूसरे का साथ निभाये
हम तुम कौन है इसे पहचाने

wah shandar

रंजू भाटिया ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने

महेंद्र मिश्र.... ने कहा…

मिल कर अब हाथ बढ़ाये
एक दूसरे का साथ निभाये
हम तुम कौन है इसे पहचाने
आपने अच्छा लिखा है.खूबसूरत है बधाई.