लगते अपने हो फ़िर भी अनजाने हो
कोशिश करता हूं तुमको अपनाने की
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
सामने आते हो तो पहचान नहीं पाता हूं
दूर तुम हो तो पहचान कर नहीं पाता हूं
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
मिलने की ख्वाईश अधूरी है
तुम से मिलना भी जरूरी है
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
मिल कर अब हाथ बढ़ाये
एक दूसरे का साथ निभाये
हम तुम कौन है इसे पहचाने
-अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई
6 टिप्पणियां:
आज आप के ब्लॉग पर आना हुआ . बहुत अच्छा लगा यहाँ आ कर...आप बहुत सधे हुए शब्दों में अपनी बात कहते हैं...आप की ये रचना भी अन्य की तरह बहुत खूबसूरत है...बधाई...
नीरज
सामने आते हो तो पहचान नहीं पाता हूं
दूर तुम हो तो पहचान कर नहीं पाता हूं
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
bahut sundar bhav badhai
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
well said......
मिल कर अब हाथ बढ़ाये
एक दूसरे का साथ निभाये
हम तुम कौन है इसे पहचाने
wah shandar
अच्छा लिखा है आपने
मिल कर अब हाथ बढ़ाये
एक दूसरे का साथ निभाये
हम तुम कौन है इसे पहचाने
आपने अच्छा लिखा है.खूबसूरत है बधाई.
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