॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
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गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

राह अपनी पहचाने



करवट बदली,अहसास बदला
“मैं” बदला “तुम” बदले
जीवन के हर पल बदले
नयी चाह में हम निकले।

क्या तेरा क्या मेरा
संवारे सब अपना बसेरा
भागे जीवन से सबके अंधेरा
हर राह में हो नया सवेरा

सत्य असत्य की हो पहचान
भगवान सबको यू दे वरदान
ना हो और ना सहे अपमान
प्यार और इज्जत का हो मान

जीवन - मरण का भेद जाने
कटु सत्य ज़िंदगी का माने
आईना कर्मो का रख सामने
राह हम अपनी सब पहचाने

- अस्तिव, आबु दाबी, यू ए ई

3 टिप्‍पणियां:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

वाह! बहुत ही अच्‍छा लिखा है अस्तित्‍व जी
महाशक्ति

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुंदर

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत ही सुंदर लिखा है।