॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
आपका स्वागत है मेरे इस ब्लोग में। आशा है आपको मेरे साथ आनन्द आयेगा। मेरा प्रयास रहेगा की आप की आशाओ में खरा उतरुंगा। सभी पढ़ने वालो को मेरा सप्रेम नमस्कार एवम् अभिनंदन। .

शनिवार, 24 नवंबर 2007

तुम जो मिल गये !!!!!!

तुम मिले तो मेरे हालात बदलते चले गये
यूँ मिलते जुलते अहसास बदलते चले गये,

तन्हाई को मेरी हमसफ़र तुम सा मिल गया
जीने को मुझे सहारा अब तुम सा मिल गया

तुम्हारी झुकी पलकों के आशिक हम बन गये
चलते चलते इस राह मे हमराही हम बन गये

रात की खामोशी हो या हो दिन कि चंचलता
प्यार का अशियाना तुम्हारी बातो से है बनता

लेकर हाथो में हाथ हर पल रहता है तुम्हारा साथ
बन जाती है बिगडी बात जब रहती हो तुम साथ


- अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई

3 टिप्‍पणियां:

बालकिशन ने कहा…

वाह साहब छा गए है आप तो. जबरदस्त कविता लिखी आपने. प्रेम रस मे सरोबर एक अच्छी कविता. कुछ यादें ताज़ा हो आई.

Divine India ने कहा…

साथी और साथिया के संग गढ़े इस रसपूर्ण कविता में मैं भी डूब गया…। बहुत सुंदर।

अस्तित्व ने कहा…

धन्यावाद बन्धुओ!!! आपके प्रोत्साहन के लिये! आप मेरी दो अन्य रचनाये भि जरूर पढे। आशा है आपको पसंद आयेगी।
अन्य रचनाए है : "रचनाकर के रंग " एवम " तुम बिन ऐसे जिया तरसे"।

आगे भी लिखता रहूँगा और आप्क प्रेम मिलता रहेगा। - अस्तित्त्व, यू ए ई