प्रेम अर्थ है,
प्रेम समर्थ है,
फिर भी ना जाने क्यो व्यर्थ है॥
प्रेम आरजू है,
प्रेम तपस्या है,
फिर भी ना जाने क्यों निराशा है॥
प्रेम चेष्टा है,
प्रेम निष्ठा है,
फिर भी ना जाने क्यों रुठा है॥
प्रेम शक्ति है,
प्रेम अनुभूति है,
फिर भी ना जाने रुकी अभिव्यक्ति है॥
प्रेम पावन है,
प्रेम नादान है,
फिर भी ना जाने क्यो परेशान है॥
प्रेम शान है,
प्रेम ईमान है,
फिर भी ना जाने बना क्यों हैवान है॥
प्रेम गीत है,
प्रेम जीत है,
फिर भी ना जाने मिलती क्यों हार है॥
- अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई
मंगलवार, 27 नवंबर 2007
~ फिर भी ना जाने क्यों ~ ( प्रेम का एक रुप यह भी)
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर मंगलवार, नवंबर 27, 2007
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2 टिप्पणियां:
प्रेम समर्थ है
प्रेम तपस्या है,
प्रेम निष्ठा है,
प्रेम शक्ति है,
प्रेम अनुभूति है,
प्रेम पावन है,
प्रेम शान है,
प्रेम ईमान है,
प्रेम गीत है,
प्रेम जीत है,
प्रेम की यही सुन्दर व्याख्या दिल में उतर गई और कुछ दिखाई ही नहीं दिया.... बस दिल से आवाज़ आई "प्रेम ही सत्य
अद्भुत प्रेममय कविता है पर जितनी भी चिंताएँ है इस कविता मे वे मनुष्य द्वारा स्वयम उत्पन्न की हुई है.
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