॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
आपका स्वागत है मेरे इस ब्लोग में। आशा है आपको मेरे साथ आनन्द आयेगा। मेरा प्रयास रहेगा की आप की आशाओ में खरा उतरुंगा। सभी पढ़ने वालो को मेरा सप्रेम नमस्कार एवम् अभिनंदन। .

शुक्रवार, 30 नवंबर 2007

सोचता था !!!!!!

सोचता था, कुछ करुंगा
अपने लिये
कुछ समाज के लिये
कुछ देश के लिये

क्या मालूम था ये
अरमान टूट जायेंगे
शीशे की तरह

ये जो पत्थर आया
जिसने अरमानो
के शीशे को चूर किया
कोसा पत्थर को
लेकिन ये तो पत्थर है
इसका क्या दोष
जिसने पत्थर फेंका
ना जाने उसके पास मेरे लिये
क्या अरमान थे

दोष तो मेरा है
जिसने पत्थर को
पास आने दिया
सोचा इस शीशे को
जोड दूँ जाकर
नया आकार दूँ इसे
परन्तु ये तो
बिल्कुल टूट चुका है

सोच रहा हूँ
इन टुकडो को कहीं
दूर डाल दूँ जाकर
नही तो ये मुझे, समाज और
देश को कष्ट पहुँचायेंगे
जिनके लिये मेरे
बहुत से अरमान थे

- अस्तित्व, यू ए ई
( ये पंक्तिया मैनें साल 1982 में लिखी थी। पहली बार इसे आज आप लोगों तक पहुँचा रहा हूँ। सोच रहा हूँ कि वो सारी रचनाये जिन्हें आयाम ना दे सका, धीरे-धीरे आप लोगो तक पहुँचाऊँ )

1 टिप्पणी:

मीनाक्षी ने कहा…

थे - निराशावादी अतीत का प्रतीक है

है - आशावादी वर्तमान में आप आज भी समाज और देश के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं...

"जीवन धारा में अपने को ढालना व्यक्ति की सबसे बडी सफ़लता है।" बहुत सही लिखा है.