॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
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रविवार, 30 दिसंबर 2007

आज की बात………

आज की बात………

नये साल कि सुगबुगाहट के शुरु होते ही वातावरण इसके इर्द-गिर्द घूमने लगता है। चाहे इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या प्रिन्ट मीडिया हो सब मिल जुट कर इसको प्रोत्साहित करते है। हम सब लोग इससे अछूते नही है। शुरु हो जाती है बधाई संदेशों की भरमार अपने ही अंदाज़ में। हिन्दुस्तानी कहीं भी हो भारत में या भारत से बहार, शायद अपने नववर्ष को इतनी अहमियत नही देते है या इस रुप में नही मनाते है। लेकिन पश्चिम की इस रीत को आसानी से अपने जीवन धारा में ढ़ाल चुके हैं। खैर इस बात को एक नये शीर्षक के साथ शुरु किया जा सकता है। अभी तो केवल नये साल की बात के साथ ही रहना चाहते है।

कुछ कल की बात करते है और कुछ आने वाले कल की बाते। कुछ लोगो को नसीहत देते हुए कुछ खुद को सुधारने की कसमें खाते हुये। कुछ समाज की बात करते हुये नही थकते तो कुछ समाज की ख़ामियाँ गिनाते हुये देखे जा सकते है।

अतीत की बातें हमेशा ही कचोटती है जिनसे स्वयं को, समाज को या राष्ट्र को हानि पहुँची हो। शायद यही वक्त होता है विचार मंथन का, फिर इससे सबक लेने का या इनसे उबरने का या फिर इसमें संशोधन करने का। सामने होता है लेखा जोखा जिसमे बस रहता है क्या खोया क्या पाया। वक्त के थपेड़े भी आने वाले कल की बुनियाद लिख जाते है, और आईना बन जाते है हमारे भविष्य का।


लेकिन क्यों ना आज एक ही वादा करें अपने आप से की स्वयं को पहचाने। हम अपने आप को निष्ठापूर्वक अपनी ही नज़रो में सभ्य, सशक्त, और श्रेष्ठ बनाये। आप योग्य तो परिवार समर्थ , परिवार समर्थ तो समाज प्रबल, अगर समाज प्रबल तो राष्ट्र महान। एक सुनहरे भविष्य की और स्वयं का पहला कदम।

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