॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
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शुक्रवार, 4 जनवरी 2008

सहारा मिला जब………




दुनिया की करने चला मैं सैर
चलने लगे खुद ब खुद मेरे पैर
कुछ मिले अपने कुछ मिले गैर
कुछ से दोस्ती कुछ से लिया बैर

रंगीन दुनिया में कुछ ढ़ूढ़ने लगा
याद आये सब, खुद को भूलने लगा
सच और झूठ के बीच पिसने लगा
जीवन जीतने लगा, मैं हारने लगा

पाने की चाह में, कुछ खोने लगा
मैं जागता रहा, दिल सोने लगा
कल लुटता रहा, आज जाने लगा
कर्म करता रहा, धर्म भूलने लगा

समझ पाया न सत्य इस जीवन का
ढ़ूँढ़ने लगा मार्ग मन की शांति का
पाया सहज रास्ता ईश्वर की भक्ति का
सहारा मिला जब प्यार की शक्ति का


- अस्तित्व

3 टिप्‍पणियां:

mamta ने कहा…

सच ही है ईश्वर की भक्ति से बड़ा कुछ भी नही है।

Keerti Vaidya ने कहा…

bhut khoob....sach kha apney ishwer prem he sabsey bada prem hai

मीनाक्षी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना... प्रेम की शक्ति उन्हे ही मिलती है जो उस शकित को मानते हैं किसी भी रूप में ...