॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
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बुधवार, 2 जनवरी 2008

याद तुम्हारी….………




अंगडाई लेती पुरवाई लेकिन
याद तुम्हारी ले आई

तन से कोसो दूर लेकिन
मन के बहुत करीब

आती शरमाती हुई लेकिन
कमर बल खाती हुई

खामोशी छाने लगी लेकिन
दिल शरारत करने लगा

संभलने लगे अहसास लेकिन
गर्म होने लगी साँस

पलके झुकने लगी लेकिन
होंठ थिरकनें लगे

मुझ को होश नहीं लेकिन
धड़कने बढ़ने लगी

शाम ढ़लने लगी लेकिन
रात जवाँ होने लगी

सपने पूरे होने लगे लेकिन
हकीकत समझ आने लगी

हम तुम बिछड़ने लगे लेकिन
याद तुम्हारी फिर आने लगी।
-अस्तित्व

1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

खामोशी छाने लगी लेकिन
दिल शरारत करने लगा
आप की रचना बहुत अच्छी लगी सुंदर शब्द मादक भाव और दिलकश अंदाज़...वाह..वाह...
नीरज