॥ॐ श्री गणेशाय नम:॥
आपका स्वागत है मेरे इस ब्लोग में। आशा है आपको मेरे साथ आनन्द आयेगा। मेरा प्रयास रहेगा की आप की आशाओ में खरा उतरुंगा। सभी पढ़ने वालो को मेरा सप्रेम नमस्कार एवम् अभिनंदन। .

मंगलवार, 11 दिसंबर 2007

यूं ही…



यूं ही हम तुम देखा करते थे
प्यार कि बोली बोला करते थे
बस यूं ही एक दूसरे के होते चले गये
जिन्दगी यूं ही चलती रहे


एक दुसरे से यूं ही मिला करते थे
मिल के एक दूजे में खो जाया करते थे
तुम बिन ना मैं रह सकू ना तुम मेरे बिन
जिन्दगी यू ही चलती रहे

प्यार से हम यूं ही लड़ा करते थे
फिर एक दूसरे को मनाते थे
बस आपस में यूं ही खेलते रहे
जिन्दगी यू ही चलती रहे

नज़रे तुम्हारी बुलाती रहती थी
आवाज़ कानो में आती रहती थी
यूं ही मुझे बुलाया - सुनाया करे
जिन्दगी यू ही चलती रहे


प्यार का घर बनाया करते थे
जहॉ अपना उसमें बसाया करते थे
ऐसे ही प्यार की बातें करते रहे
जिन्दगी यू ही चलती रहे

- अस्तित्व

3 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

अच्छा लिखा है लिखते रहिये ।
घुघूती बासूती

बालकिशन ने कहा…

लिखा तो आपने यूं ही.
पर बहुत अच्छा लिख दिया यूं ही.
साधुवाद.

mamta ने कहा…

कविता तो बहुत अच्छी लिखी है। आगे भी लिखते रहिएगा।