यूं ही हम तुम देखा करते थे
प्यार कि बोली बोला करते थे
बस यूं ही एक दूसरे के होते चले गये
जिन्दगी यूं ही चलती रहे
एक दुसरे से यूं ही मिला करते थे
मिल के एक दूजे में खो जाया करते थे
तुम बिन ना मैं रह सकू ना तुम मेरे बिन
जिन्दगी यू ही चलती रहे
प्यार से हम यूं ही लड़ा करते थे
फिर एक दूसरे को मनाते थे
बस आपस में यूं ही खेलते रहे
जिन्दगी यू ही चलती रहे
नज़रे तुम्हारी बुलाती रहती थी
आवाज़ कानो में आती रहती थी
यूं ही मुझे बुलाया - सुनाया करे
जिन्दगी यू ही चलती रहे
प्यार का घर बनाया करते थे
जहॉ अपना उसमें बसाया करते थे
ऐसे ही प्यार की बातें करते रहे
जिन्दगी यू ही चलती रहे
- अस्तित्व
3 टिप्पणियां:
अच्छा लिखा है लिखते रहिये ।
घुघूती बासूती
लिखा तो आपने यूं ही.
पर बहुत अच्छा लिख दिया यूं ही.
साधुवाद.
कविता तो बहुत अच्छी लिखी है। आगे भी लिखते रहिएगा।
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