रविवार, 28 दिसंबर 2008
लो नया साल आया है…… बधाई हो
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर रविवार, दिसंबर 28, 2008 5 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
लगते अपने हो फ़िर भी अनजाने हो
कोशिश करता हूं तुमको अपनाने की
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
सामने आते हो तो पहचान नहीं पाता हूं
दूर तुम हो तो पहचान कर नहीं पाता हूं
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
मिलने की ख्वाईश अधूरी है
तुम से मिलना भी जरूरी है
तुम कौन हो जो जाने पहचाने हो?
मिल कर अब हाथ बढ़ाये
एक दूसरे का साथ निभाये
हम तुम कौन है इसे पहचाने
-अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, दिसंबर 26, 2008 6 टिप्पणियाँ
मन मेरा
सोचता क्या मन
कुछ खेलता मन
कुछ झेलता मन
हँसता हुआ मन
रोता हुआ मन
कुछ बोलता मन
प्यार करता मन
सवाल मन में
जबाब मन में
तनाव मन में
लगाव मन में
असहाय सा मन
अकेला सा मन
बुदबुदाता मन
गुनगुनाता मन
मन मेरा ना माने
क्या कहे ना जाने
कोई सीमा नहीं मन की
कहानी ये मेरे मन की
- अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, दिसंबर 26, 2008 1 टिप्पणियाँ
शनिवार, 20 दिसंबर 2008
उम्मीद के दामन में
उम्मीद के दामन में
छुपी है जीत जिन्दगी की
सतरंगी सपनो की और
क्षितिज को छूने की चाह
उम्मीद के दामन में
छुपी है आसमान की ऊँचाई
पक्षियों सी उड़ान की और
चाँद तारों से मिलने की चाह
उम्मीद के दामन में
छुपी है सागर की गहराई
लहरो से मिलने की और
दूर तक बहने की चाह
उम्मीद के दामन में
छुपी है दीपक कि लौ
तपने की कीमत और
रोशनी फैलाने की चाह
-अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शनिवार, दिसंबर 20, 2008 2 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 18 दिसंबर 2008
राह अपनी पहचाने
करवट बदली,अहसास बदला
“मैं” बदला “तुम” बदले
जीवन के हर पल बदले
नयी चाह में हम निकले।
क्या तेरा क्या मेरा
संवारे सब अपना बसेरा
भागे जीवन से सबके अंधेरा
हर राह में हो नया सवेरा
सत्य असत्य की हो पहचान
भगवान सबको यू दे वरदान
ना हो और ना सहे अपमान
प्यार और इज्जत का हो मान
जीवन - मरण का भेद जाने
कटु सत्य ज़िंदगी का माने
आईना कर्मो का रख सामने
राह हम अपनी सब पहचाने
- अस्तिव, आबु दाबी, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर गुरुवार, दिसंबर 18, 2008 3 टिप्पणियाँ
बुधवार, 24 सितंबर 2008
तुमसे बिछड़ा तो......
रेगिस्तान सा आभास लगा
होश अपने खोने लगा
जोश मेरा हिलने लगा
रेत का असहाय टीला
चारो ओर फ़िर भी गी्ला
रेत के बिखरते कण
दर्द के बिलखते क्षण
यादों का बहता सैलाब
फ़िर भी ना मिलते जबाब
पल-पल उखड़ती सांस
सहारा ढूँढती रही आस
इस मरुस्थल में जाना
प्यार का अपना फंसाना
तुमसे दूरी का अहसास
और पास होने का आभास
- अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, सितंबर 24, 2008 6 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 19 सितंबर 2008
आहट तेरी आये तो……
दर्द के लमहे समेटे
अहं की चादर लपेटे
वक्त के सूनेपन में
खोया यूं अपने में
आहट तेरी आये तो????
यादों के साये में
मौसम के बहकाये में
ख्वाबों के बिखरने में
आंसुओ के छलकने में
आहट तेरी आये तो????
खुशबू तेरी हर सांस में
दूरी के हर अहसास में
गिरते हुये विश्वास में
प्यार की हर आस में
आहट तेरी आये तो????
‘अस्तित्व’ अपना बचा ले
प्यार अपना हम पा ले
दुःख दर्द अपना बांट ले
जीना फ़िर सीख ले
आहट तेरी आये तो।
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, सितंबर 19, 2008 6 टिप्पणियाँ
सोमवार, 15 सितंबर 2008
दिल्ली में फिर्…………
आंतक का दानव फ़िर बहका
सांसे कुछ रुक गई
जिदगी कुछ थम सी गई
घाव रिसने लगे
खून फैलने लगा
भारत का दिल फ़िर दहका।
बयानो ने फ़िर धावा बोला
हर नेता ने अपना पासा फेंका
सबने की आंतक की निंदा
खेल फिर भी खेलेते गंदा
शुध्द राजनिती अब तो सीखो।
जनता का रोष कुछ दिखने लगा
सरकार से सवाल पूछने लगे
लोग आज उग्र हैं कल चुप हैं
फ़िर केवल अपने में खुश है
आंतक से बचना है तो आज चुप ना रहिये।
दशहत फैलाने वालो
कुछ होश अपने सम्भालो
नफरत नहीं प्यार पाओ
जीवन लेना नही देना सीखो
धर्म अपना अब तो पह्चानो।
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, सितंबर 15, 2008 1 टिप्पणियाँ
शनिवार, 16 अगस्त 2008
अगले स्वतन्त्रता दिवस कि तैयारी?????
आजादी का जश्न खतम हुआ। पिछले दो दिनो से लोगो में एक उत्साह और देशभक्ति का जज्बा देखने लायक था। सभी लोगो ने किसी न किसी रूप में इसका हिस्सा बनने कि कोशिश की। मौजूदा सरकार ने भी आगामी चुनाव कि खातिर अपना खजाना खोला। चाहे महंगाई की मार से आम आदमी जूझ रहा हो। स्वाधीनता दिवस को हमारे प्रिय चैनलों ने भी कुछ प्रोग्रामों के द्वारा लोगो को आजादी का मतलब सिखाने की कोशिश की तथा देशभक्ति से भरपूर गाने या चलचित्र के माध्यम से देशभक्ति का जोश भरने कि कोशिश की। वन्दे मातरम के स्वर के साथ सबने उदघोष किया। मेरे सहित सभी ब्लॉगर दोस्तो ने भी बधाई संदेश एवम शुभकामनाये भेजी और अपने ढंग से आजादी कि व्याख्या समझाने की कोशिश की। कुछ लोगो ने इसे एक अवकाश की भाँति बिताया होगा। सरहद पर बैठे हमारे सैनानियो ने भी अपने विश्वाश को और मजबूत किया होगा। बच्चो ने भी अपने स्कूल के माध्यम से प्रायोजित कार्यक्रम के द्वारा कुछ हासिल करने की कोशिश की होगी। विदेशों में रह रहे हम जैसे भारतियों ने भी किसी ना किसी रुप में तिरंगे और जज़्बात का सम्मान किया।
पर क्या अब इन्तजार रहेगा फ़िर से अगले साल आने वाले स्वाधीनता दिवस मनाने के लिये? क्या स्वाधीनता दिवस मनाकर ही हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है? शायद नहीं!
मेरे मन में कुछ सवाल सभी लोगो से है और मैं समझता हूँ यदि इन सब सवालों के उतर हम हाँ में दे सके तो सही मानो में स्वाधीनता पा सकते है और देश को खशहाल बना सकते है।
अ) क्या हमारे राजनेता राजनीति से उपर उठ सकते है? क्या हमारे राजनेता चंद कार्य ईमान्दारी के साथ कर सकते हैं?
आ) क्या हमारे प्रिंट मीडिया या इलेक्ट्रानिक मीडिया होड़ से हटकर हर एक नेता का लेखा जोखा(उनके अच्छे बुरे कार्य )लोगो के सामने ( केवल चुनावी समय पर नहीं) ला सकते है। क्या हम बलात्कार, खून और लूट जैसी घटनाओं को एक सीमित स्थान देकर सामाजिक द्रिष्टि से प्रोत्साहित या अन्य उपलब्धियों को महत्वपूर्ण स्थान दे सकते है? क्या ऐसे कार्यक्रम पेश कर सकते है जिनसे युवा पीढी को सेना या अन्य क्षेत्रों की ओर आकर्षित कर सके जिसमें उनका लगाव कम होता जा रहा है।
इ) क्या हर एक नागरिक (अधिकतर सरकारी कार्यालय) अपना काम निष्ठापूर्वक कर सकते है? भ्रष्टाचार को बढावा ना देने का संकल्प ले सकते है?
ई) क्या हम मानवता के मूल्यों को अपना सकते है?
उ) क्या हम अपना द्वेषभाव त्याग सकते है?
ऊ) क्या शिक्षा को प्रत्येक बच्चे का हक बना सकते है?
अगर ठान ली जाये तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं और फ़िर देश की खातिर हो या तिरंगे की खातिर !!! जय हिन्द!!! वन्दे मातरम!!!
- अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शनिवार, अगस्त 16, 2008 0 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 14 अगस्त 2008
सच्चा हिन्दुस्तानी कहलाये
तिरंगा हमारी आन है बान है
हर हिंदुस्तानी की ये शान है
शहीदों की कुर्बानी की अलग कहानी
कुछ गोली खाकर शहीद कहलाये
कुछ फ़ासी के फ़ंदे पर झूल गये
कुछ ने देश के लिये किया समर्पण
कुछ ने किया सब कुछ अपना अर्पण
आज हम हर माने में स्वतंत्र है
लेकिन फ़िर भी बिगड़े सारे तंत्र है
गरीबी अमीरी की खाई बढती जा रही
आंतक की बू हर दिन फैल रही
राजनीति भी खूनी - खेल खेल रही
आजादी के जशन हम हर साल मनाते है
लेकिन मानवता को हर पल भूलते जा रहे है
देश और लोग उन्नति की ओर अग्रसर है
आम जिदगी फ़िर भी इससे बेअसर है
ढूँढते रहते ये सब किसका कसूर है?
आओ आज तिरंगा फ़िर लहराये
अमीरी गरीबी का ये भेद मिटाये
राजनीति से हटकर प्रेम फैलाये
जाति - भाषा का ये जाल हटाये
खुद को सच्चा हिन्दुस्तानी कहलाये।
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर गुरुवार, अगस्त 14, 2008 3 टिप्पणियाँ
बुधवार, 30 जुलाई 2008
आईना
जिंदगी का आईना
हर वक्त बदलता है
आईने के सामने
बनाते बिगाड़ते चेहरे
कल के चेहरे में
आज का रंग भर देते हैं
कल की पहचान बना देते है
आईना झूठ नहीं कहता
चेहरे का सच हम जानते है
फिर भी कल को छोड़
कल को देखते है
आज की तस्वीर बनाते है
कल को बदलने की चाह में
आइने में आज संवारते है
आईने की सच्चाई
मन में फ़िर भी रहती है
झूठ को कचोटती है
लेकिन सच को छुपाती है
फिर आँखे मूँद सपने सजते है
प्रशन भी आज उठते है
हकीकत किस से छिपा रहे हैं?
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, जुलाई 30, 2008 3 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 25 जुलाई 2008
कैसे ?
दूरियां दर्मियां होती तो
पास तुम्हारे हो्ता कैसे?
आंखे मिलती नहीं हमारी तो
इन आँखो में बसाता कैसे?
तुमसे अनजान होता तो
अपनी जान बनाता कैसे?
आवाज सुनी ना होती तो
प्यार के स्वर सुनता कैसे?
इंतजार किया न होता तो
मिलने का पल समेटता कैसे?
अहसास रुक जाते तो
सांसे यूं समाती कैसे?
प्रीत तुमसे की न होती तो
गीत मन के लिखता कैसे?
- अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, जुलाई 25, 2008 4 टिप्पणियाँ
सोमवार, 21 जुलाई 2008
ऐसा भी होता है
जो मिलने लगी
पास आने लगी
सताने लगी
तरसाने लगी
मुस्कराने लगी
हाथ आगे बढे
कदम मिलने लगे
अहसास जुड़ने लगे
आँखें मिली
दिल मिले
चेहरे खिले
आँखें खुली
सपना टूटा
साथ छूटा
अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, जुलाई 21, 2008 3 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 18 जुलाई 2008
चेहरा
एक चेहरा, लेकर आया दो रुप
पल-पल क्यों बदलने लगा स्वरूप?
कैसे पहचाने इनके असली रंग
प्रेम या द्वेष, कौन है इसमें संग?
एक झूठ है तो दूसरी है सच्चाई
किस से शुरू करे अपनी लड़ाई?
आज और कल के उठते सवाल
करते है क्यों हमको ये बेहाल ?
हर चेहरे के बदलते गीत
छुपी है इसमें क्या हकीकत ?
खुशी - गम का अनजाना साया
इसमें क्या खोया क्या पाया?
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, जुलाई 18, 2008 2 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 10 जुलाई 2008
तो क्या बात होती
हम - तुम एक हो जाते तो क्या बात होती
तेरा दर्द मैं सह पाता तो क्या बात होती
तेरे आंसू मेरी आंख से आते क्या बात होती
तेरा गम मैं समेट पाता तो क्या बात होती
तेरी परछाई मैं बन पाता तो क्या बात होती
मेरी खुशनसीबी तुम्हें मिल जाती तो क्या बात होती
तुम्हारा प्यार मुझे मिल जाता तो क्या बात होती
मेरा सुख-चैन तुम को मिल जाता तो क्या बात होती
मेरी मुस्कराहट तुम को मिल जाती तो क्या बात होती
तेरे दामन में ख़ुशियाँ मैं भर पाता तो क्या बात होती
दुनिया की बुरी नज़र से बचा पाता तो क्या बात होती
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर गुरुवार, जुलाई 10, 2008 0 टिप्पणियाँ
सोमवार, 7 जुलाई 2008
हकीकत या फ़साना,जीने का ढूढे बहाना
झुंझलाती रहती है अपनी चेतना
हर मोड़ पर दिखते हैं अब बिखरे कांटे
ना जाने क्यों दिल से दिल को हम बांटे
प्यार का करते रहते है हम सब ढोंग
लेकिन हैं दुश्मन एक दूजे के हम लोग
खून मानवता का अब और सस्ता हुआ
जीना बेसुध दुनिया में और महंगा हुआ
अंगड़ाई जोश की लेती तो है जवानी
स्वार्थ कि खातिर बन जाती नई कहानी
फ़ैशन बन कर अब विलुप्त हो रही खादी
मूक रहकर खुली आंख से देख रहे बर्बादी
कुछ हक़ीकत है, कुछ है फंसाना
फ़िर भी जीने का ढूंढ़े हम बहाना
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, जुलाई 07, 2008 2 टिप्पणियाँ
बुधवार, 4 जून 2008
प्रेम कहानी
तुम जब भी मेरे पास आये,
प्यार की परिभाषा बदलती रही।
जब भी तुमने मुझे छुआ
अहसास हमारे हर पल बदलते रहे।
तुम्हारी आँखों ने जब भी कुछ कहा
सपने मेरी आँखों के बदलते रहे
तुम्हारे दिल ने जब भी मुझे पुकारा
दिल के जज़बात फ़िर तड़पेंगे लगे
रात की खामोशी जब कुछ कहने लगी
हम तुम तब कुछ बहकने से लगे
दूरियां जब कुछ कम होने लगी
प्यार के अंदाज़ फ़िर बदलने लगे।
होंठ जब तुम्हारे कंपकंपाने लगे
जुबां ना जाने मेरी क्यों लड़खड़ाने लगी
सांसे जब तुम्हारी तेज़ चलने लगी
प्यार कि गहराई हर पल बदलती रही।
वक्त और मौसम बस बदलते चले गये
हम और तुम प्यार में बस चलते गये
अहसास फ़िर भी बदलते रहे
प्यार में हम यूं ही निखरते रहे
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, जून 04, 2008 3 टिप्पणियाँ
बुधवार, 7 मई 2008
ये हम कैसे उन्हें बतायें ?
ये हम कैसे उन्हें बतायें ?
ख्वाब और हकीकत की ये कहानी
याद और अपने दिल कि जुबानी
प्यार और अपने जज़बात की नादानी
अहसास और शरारत की दीवानगी
कल और आज की रुसवाई
भाव और घावों की गहराई
वफा और बेवफाई की सच्चाई
कसमों - वादो की दुहाई
बिछोह और दूरी का गम
आंखो और होन्ठो की बैचैनी
तन और मन की कशिश
प्रेम और त्याग की परिभाषा
ये हम कैसे उन्हें बतायें ?
- अस्तित्व, यु ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, मई 07, 2008 2 टिप्पणियाँ
बुधवार, 19 मार्च 2008
वक्त के साथ तेरा गीत
हर बीते पलो को समेटने लगा
संकुचित मन से वक्त को देखा
पीड़ा का अहसास उसमें पाया
दुखते और सुलगते घावों को
असहाय सा इस दौर में पाया
समझ न सका वक्त का इशारा
अपने को सवालों से मजबूर पाया
जीने कि चाह मे उठते गिरते स्वर
पल - पल वेदना के चुभते खंजर
सुख में ईश्वर का ध्यान हर पल आया
इस बार आंख ना उससे मिला पाया
इन सब के बीच कम हुआ न तेरा प्यार
हर पल संभालते रहा तेरे प्रेम का संगीत
साहस और शक्ति देता रहा तेरे प्यार का गीत
हर हार में भी महसूस की मैंने अपनी जीत
-अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, मार्च 19, 2008 2 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 25 जनवरी 2008
शुक्रवार, 11 जनवरी 2008
बुधवार, 9 जनवरी 2008
प्रेम तुम्हारा………
प्रेम तुम्हारा है अति पावन
दिखाये हर पल मुझको सावन
स्पर्श तुम्हारा है रुई जैसा
कोमल है जो मन की भाषा
प्रेम करती तुम्हारी हर अदा
मधहोश करती तुम्हारी हर सदा
सागर सी गहराई है इसमें
झील सी है शांति इसमें
प्यार का हर रंग छलकता इसमें
प्रेम के हर साज बजते है इसमें
हर मौसम की झलक है इसमें
जिंदगी की हर राह समाई इसमें
प्यार ने दी हर नई सांस मुझको
तुम्हारे प्रेम की तरंग छूती मुझको
-अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, जनवरी 09, 2008 0 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 8 जनवरी 2008
क्रिकेट जगत में भूचाल
क्रिकेट जगत में भूचाल मचाया
टैस्ट मैच जब सिडनी में कराया
आर पी ने अपना जादू चलाया
भज्जी ने भी साथ खूब निभाया
सैमोन्ड को जब नोट आऊट बताया
बकनर ने अपना खाता खोल दिया
सचिन लक्ष्मण ने सैकड़ा फिर किया
द्रविड़ गांगुली ने तब स्कोर बढाया
भज्जी का बल्ला फ़िर बोला
ईशांत ने भी हाथ खूब दिखाया
रनों का सबने अम्बार लगाया
आस्ट्रेलिया को रनों से पीछे लगाया
दूसरी पारी
कंगारू कुछ सम्भले इस बारी
रनों से कर दी जंग अब जारी
द्रविड़ को बकनर ने आऊट दिया
भारत को फिर से झटका दिया
पोंटिग ने बेंसन को अगुँली दिखाई
गांगुली को पवेलियन की राह दिखाई
दिपिका ने जन्मदिन यहाँ मनाया
युवी धोनी ने निराश सबको किया
हाग ने बौल के साथ गाली सुनाई
कुम्बले ने शिकायत दर्ज करवाई
बकनर ने टैस्ट भारत को हरवाया
हिंदुस्तानियों ने उसको बेईमान बताया
भारत ने संघर्ष चौदह से किया
सिडनी टैस्ट आस्ट्रेलिया के नाम हुआ
खेल खेल में भज्जी बोला
सैमोन्ड ने फ़िर धावा बोला
प्रोक्टर ने फिर फैसला सुनाया
तीन मैच के लिये निषेध किया
भारतीय टीम ने रुख कड़ा किया
बीसीसीई ने फिर विरोध जताया
सच बनाम झूठ की हुई लड़ाई
आई सी सी ने फिर हिम्मत दिखाई
भारतीयों को नैतिक जीत दिलवाई
देश्प्रेमियो को कुछ राहत दिलाई
बकनर सीरीज से अब बाहर हुआ
अगले मैचो के लिये है हमारी दुआ
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर मंगलवार, जनवरी 08, 2008 0 टिप्पणियाँ
सोमवार, 7 जनवरी 2008
मुश्किल है अपने से दूर करना
आसान है तुमको गले लगाना
मुश्किल है अपने से दूर करना
आसान है प्यार का इजहार करना
मुश्किल है तुम बिन इंतज़ार करना
आसान है तुम से नज़रे मिलाना
मुश्किल है तुम से नज़रे चुराना
आसान है तुमसे प्यारी बाते करना
मुश्किल है तुम से रुठ कर बैठना
आसान है तुम से दोस्ती करना
मुश्किल है तुम से बेवफाई करना
आसान है तुम पर अहसान जताना
मुश्किल है तुम से अहसास छुपाना
आसान है तुम रुठो तो मनाना
मुश्किल है तुम से फासले बनाना
आसान है तुमको नज़रो में बसाना
मुश्किल है अपने से दूर करना
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, जनवरी 07, 2008 0 टिप्पणियाँ
रविवार, 6 जनवरी 2008
तुम संग नाचूँ,
अपनी धुनों से दीवाना तुमको बनाऊँ
प्यार के खेल में जीत ले हम बाजी
तुम संग नाचूँ, गीत, मिलन के गाऊँ
तुम कहो तो दुनिया से मैं लड़ जाऊँ
धरती क्या अम्बर में तूफान मचाऊँ
सागर की मौजो को गले लगाऊँ
तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ
पंछी जैसे साथ तुम्हें ले मैं उड़ जाऊ
नील गगन में प्यार तुम्हें सिखलाऊँ
तराना प्यार का तुमको मैं सुनाऊँ
तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ
दिल में अपने मूरत तुम्हारी है बनाई
किया है प्यार तुम्हीं से, ये है सच्चाई
साथ जियेंगे कसम ये है मैंने खाई
तुम संग नाचूँ, गीत मिलन के गाऊँ।
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर रविवार, जनवरी 06, 2008 0 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 4 जनवरी 2008
सहारा मिला जब………
दुनिया की करने चला मैं सैर
चलने लगे खुद ब खुद मेरे पैर
कुछ मिले अपने कुछ मिले गैर
कुछ से दोस्ती कुछ से लिया बैर
रंगीन दुनिया में कुछ ढ़ूढ़ने लगा
याद आये सब, खुद को भूलने लगा
सच और झूठ के बीच पिसने लगा
जीवन जीतने लगा, मैं हारने लगा
पाने की चाह में, कुछ खोने लगा
मैं जागता रहा, दिल सोने लगा
कल लुटता रहा, आज जाने लगा
कर्म करता रहा, धर्म भूलने लगा
समझ पाया न सत्य इस जीवन का
ढ़ूँढ़ने लगा मार्ग मन की शांति का
पाया सहज रास्ता ईश्वर की भक्ति का
सहारा मिला जब प्यार की शक्ति का
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, जनवरी 04, 2008 3 टिप्पणियाँ
बुधवार, 2 जनवरी 2008
याद तुम्हारी….………
अंगडाई लेती पुरवाई लेकिन
याद तुम्हारी ले आई
तन से कोसो दूर लेकिन
मन के बहुत करीब
आती शरमाती हुई लेकिन
कमर बल खाती हुई
खामोशी छाने लगी लेकिन
दिल शरारत करने लगा
संभलने लगे अहसास लेकिन
गर्म होने लगी साँस
पलके झुकने लगी लेकिन
होंठ थिरकनें लगे
मुझ को होश नहीं लेकिन
धड़कने बढ़ने लगी
शाम ढ़लने लगी लेकिन
रात जवाँ होने लगी
सपने पूरे होने लगे लेकिन
हकीकत समझ आने लगी
हम तुम बिछड़ने लगे लेकिन
याद तुम्हारी फिर आने लगी।
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, जनवरी 02, 2008 1 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 1 जनवरी 2008
फिर क्या बदला?
बीत गये कुछ लम्हे
अब रात होने को आई
क्या अलग था कल से
सोचने लगा इस शाम से
कुछ भी नहीं बदला
क्या बदला मैं?
क्या बदले तुम?
क्या बदल गये वो?
बदला तो क्या बदला?
दिन वही, रात वही
फिर क्या बदला?
तुम वही, मैं वही
फिर क्या बदला?
भूख वही, प्यास वही
फिर क्या बदला
हँसी वही, आँसू वही
फिर क्या बदला?
ईर्ष्या वही, प्यार वही
फिर क्या बदला?
रिश्ते वही, नाते वही
फिर क्या बदला?
दर्द वही, पीड़ा वही
फिर क्या बदला?
रात की काली स्याही में
सुबह की उभरती लाली में
शायद सुबह कुछ बदल जाये
इसी आस में कल के इंतजार में
-अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर मंगलवार, जनवरी 01, 2008 0 टिप्पणियाँ