जीवन अतुल्य है्। जीवन जीने की राह एक कठिन मगर अपने में उस जीवन को जीने की चाह और उसको अपने कर्तव्य मार्ग से जोड़ सकती है या फिर भटका सकती है। यथाशक्ति व मन से किया हुआ हर कार्य जरूर एक मंजिल की ओर अग्रसित करता है।
मन की भावना और शक्ति एक ऐसी राह की ओर बढती जाती है जिसमें अवश्य ही विजय निश्चित होती हाँ अगर भाग्य ने साथ दिया तो अवश्य ही अजेय घोषित होंगे।
मेरा मानना है कि मनुष्य के कर्म अवश्य ही आज को एक रुप देते है।लेकिन विजय और हार उस उपर वाले के हाथ है जिसे हम भगवान, अल्लाह या फिर जीसस के नाम से जानते है। ईश्वर जो करता है अच्छे के लिये करता है। लेकिन हम लोग आज को समेटने की कोशिश केवल अच्छे के लिये करते है। अगर हम लोग अपने को भूल कर को केवल आज को एक सुनियोजित ढ़ग से जीने की राह पकड़ ले तो आज को हम जी पायेंगे। कल की चिंता अवश्य ही हमें एक ऐसी उधेड़-बुन में डाल देती है की हम आज को ठीक से नही जी पाते है। आज को हम सफल बनाये इसी में ही हमारी खुशी है।अगर एक पल के लिये मान ले कि आज हम प्रारब्ध का फल पा रहे है अच्छा या बुरा तो क्यों ना हम आने वाले कल के लिये आज को अच्छा करे। आज को जी ले आज को अपने लिये और दूसरों के लिये अच्छा करें।
हर मनुष्य अच्छी सोच के साथ जीवन के लम्हों को जीना चाहता है केवल उसकी नकारात्मक और धनात्मक सोच ही उसके कल को बनाती है। एक दोहा याद आता है
“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल मे प्रलय होयेगी बहुरी करेगा कब”
आज को सुन्दर बनाये कल की चिंता कल के लिये छोड़ दे।
साल 2008 में और आने वाला हर पल आपको सफल और स्वस्थ रखे खुशियों के साथ इसी शुभकामनाओं के साथ
आपका अस्तित्व
सोमवार, 31 दिसंबर 2007
जीवन अतुल्य है………
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, दिसंबर 31, 2007 3 टिप्पणियाँ
रविवार, 30 दिसंबर 2007
आज की बात………
आज की बात………
नये साल कि सुगबुगाहट के शुरु होते ही वातावरण इसके इर्द-गिर्द घूमने लगता है। चाहे इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या प्रिन्ट मीडिया हो सब मिल जुट कर इसको प्रोत्साहित करते है। हम सब लोग इससे अछूते नही है। शुरु हो जाती है बधाई संदेशों की भरमार अपने ही अंदाज़ में। हिन्दुस्तानी कहीं भी हो भारत में या भारत से बहार, शायद अपने नववर्ष को इतनी अहमियत नही देते है या इस रुप में नही मनाते है। लेकिन पश्चिम की इस रीत को आसानी से अपने जीवन धारा में ढ़ाल चुके हैं। खैर इस बात को एक नये शीर्षक के साथ शुरु किया जा सकता है। अभी तो केवल नये साल की बात के साथ ही रहना चाहते है।
कुछ कल की बात करते है और कुछ आने वाले कल की बाते। कुछ लोगो को नसीहत देते हुए कुछ खुद को सुधारने की कसमें खाते हुये। कुछ समाज की बात करते हुये नही थकते तो कुछ समाज की ख़ामियाँ गिनाते हुये देखे जा सकते है।
अतीत की बातें हमेशा ही कचोटती है जिनसे स्वयं को, समाज को या राष्ट्र को हानि पहुँची हो। शायद यही वक्त होता है विचार मंथन का, फिर इससे सबक लेने का या इनसे उबरने का या फिर इसमें संशोधन करने का। सामने होता है लेखा जोखा जिसमे बस रहता है क्या खोया क्या पाया। वक्त के थपेड़े भी आने वाले कल की बुनियाद लिख जाते है, और आईना बन जाते है हमारे भविष्य का।
लेकिन क्यों ना आज एक ही वादा करें अपने आप से की स्वयं को पहचाने। हम अपने आप को निष्ठापूर्वक अपनी ही नज़रो में सभ्य, सशक्त, और श्रेष्ठ बनाये। आप योग्य तो परिवार समर्थ , परिवार समर्थ तो समाज प्रबल, अगर समाज प्रबल तो राष्ट्र महान। एक सुनहरे भविष्य की और स्वयं का पहला कदम।
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर रविवार, दिसंबर 30, 2007 0 टिप्पणियाँ
शनिवार, 29 दिसंबर 2007
नववर्ष मंगलमय हो
इस नववर्ष पर मन कुछ करने को कहता है
दुआ करता हूँ और करके नमन
नववर्ष मंगलमय हो।
हर पल आशामय हो, जग में नूतन मान मिले
आपके कठिन परिश्रमों का सुंदर परिणाम मिले
गम मुसीबतें दूर हटे, बाधाओं का कभी भय ना हो
नववर्ष मंगलमय हो।
खुशियाँ आपके घर आये, धन दौलत की कमी ना हो
प्यार का बीज फलता रहे, जीवन रण मे अजय रहो
द्वेष- भावना को त्यागकर, अस्तित्व को अपने पहचानो
नववर्ष मंगलमय हो।
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शनिवार, दिसंबर 29, 2007 3 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007
शांति शांति शांति
कैसा दिखता है
कोई जान नहीं पाया।
बस जान पाया तो केवल
दर्द, पीड़ा, भय और दशहत
खून, गोली, धमाका और नफरत
चारों ओर होते नज़ारे हताहत
फ़िर दिखती है
बिलखती दुनिया,
बढ़ती नफ़रत
प्रदर्शन करती जनता
उग्र होती भावनायें
एक आम इंसान
मूक दर्शक की भाँति
केवल सहम जाता है
अफसोस करता है
कल को संजोने कि आस में
फिर आँखे मूँद लेता है
कब होगी चारों ओर
शांति शांति शांति
कब रुकेगा आंतक, होगी
शांति शांति शांति
एक स्वर में विनती करे
शांति शांति शांति
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, दिसंबर 28, 2007 2 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 25 दिसंबर 2007
वेदना
कंपकंपाते होंठ
चुभते शब्द
रुठती जिन्दगी
रुलाते पल
अचेत प्राण
सुलगती चेतना
तरस खाती निगाहें
विमुख होती आस
बेरुखी रात की
निराशा दिन की
नीरसता सावन की
दु:खती रग
व्याकुल भाव
बुझती शान
बयां करते है
सहमे जज्बात
दिल का दर्द
अंतरमन की वेदना
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर मंगलवार, दिसंबर 25, 2007 4 टिप्पणियाँ
सोमवार, 24 दिसंबर 2007
ज़िन्दगी …………
जिन्दगी ललकार है….…आओ इसका सामना करे।
जिन्दगी कर्म है…………आओ इसका पालन करे।
जिन्दगी गम है…………आओ इस पर विजय पाये।
जिन्दगी गीत है…………आओ इस को गाये।
जिन्दगी तस्वीर है………आओ इसका आनन्द उठाये।
जिन्दगी खेल है…………आओ इसको खेले।
जिन्दगी वादा है…………आओ इसको पूरा करे।
जिन्दगी जंग है…………आओ इसे स्वीकार करे।
जिन्दगी दुष्कर कार्य है………आओ इसे साहस से निभाये।
जिन्दगी भगवान का कार्य है……इसकी पूजा करे।
-अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, दिसंबर 24, 2007 1 टिप्पणियाँ
शनिवार, 22 दिसंबर 2007
गुदगुदाती तस्वीरे
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शनिवार, दिसंबर 22, 2007 1 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007
हर सफलता के पीछे………।
मन मस्तिष्क के सौजन्य से निकलते विचार कोरे पन्नो पर कलम के सहारे अचानक ही उभर जाते है। ना बोध रहता है ना ही संयम, बस नज़र आते है तो केवल अक्षर जो उन कोरे पन्नो पर एक छाप छोड़ जाते है। फिर होता है विश्लेषण सही और गलत, सामाजिक और असामाजिक, बुरा और भला। कुछ बाते प्रासंगिक लगती है कुछ सत्य से सामना कराती हुई, कुछ हंसी से ओत- प्रोत, कुछ मन में पीड़ा, कुछ प्रेम का अहसास दिलाती हुई, कुछ सिखलाती हुई, कुछ अपने आप को झंझोड़ने के लिये काफी होती है। लिखना और उसको पढ़ने लायक स्वरूप देना या पढ़ने वालो को जिज्ञासा दिलाना ही लेखक की सफलता है।
शौक तो था लिख्नने का, खेल का और अभिनय का। सभी में अपनी मौजूदगी दर्ज भी कराई। लेकिन किसी छेत्र में स्वंय को परिपूर्ण नही पाया। जब मैं छात्रावास में रहता था सन 1983-85 की बात है कभी- कभी अकेलेपन को दूर करने के लिये मन उठते भावों को फिर से लिखना शुरु कर दिया। कई पन्ने लिखे , कितने पन्ने फाड़े और कुछ पन्नो को आज भी संजो कर रखा है। फ़िर जब 1987 मे यू ए ई में आना हुआ तो भी वही अकेलापन फिर से लिखने के शौक को चिंगारी दे गया। आज भी डायरी के पीले होते हुये पन्ने उस दौर को याद दिलाते है।
फिर सन 1993 में एक अध्याय जुड़ा जब मैं प्रणय-बन्धन मे बंधा। उस वक्त भी कलम उस अहसास को लिखती चली गई। मेरे इसी प्यार ने समय समय पर मुझे प्रेरित किया क्योंकि उसे लगता था कि मैं लिखने की इच्छा रखता हूँ और प्रेषित कर सकता हूँ पर शायद कभी उसकी इस भावना को एक स्थान न दे सका। फिर काम और वक्त ने भी मुझे इससे दूर रखा। लेकिन उसके विश्वास का नतीजा है कि आज मैं कुछ आप लोगो तक पहुँचाने मे सक्षम हुआ हूँ। उसकी खोज और इस ब्लोग का स्तर और भिन्न-भिन्न चिट्ठे ने उसके विश्वास को एक नई दिशा दी जिसे मैंने भी स्वीकार किया और बना डाला ब्लोग। आज भी वक्त और काम उसी स्तर पर है या कहे कि अधिक है लेकिन फ़िर भी मन नही मानता बिना लिखे हुये। लेख कविताये कैसी होंगी वो तो आप लोग ही निर्णय लेंगे,लेकिन एक बात तो सत्य है कि हर सफलता के पीछे नारी का हाथ होता है। मैंने इसे समय - समय पर मह्सूस किया है। आप सहमत हैं क्या ?
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, दिसंबर 21, 2007 2 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 20 दिसंबर 2007
आज फिर उनको ………
सपने में आकर चुपके से मुझे जगाया
कहने लगी भूल जाओ कल की कहानी
चलो शुरु करे अब फिर एक नई कहानी
अपना सहारा तुम्हें बनाना चाहती हूँ
तुम को अपना प्यार बनाना चाहती हूँ
तुम ही तो हो मेरे श्रृंगार – दर्पण
करती हूँ मैं तुमको सब कुछ अर्पण
आज फिर मुझे सीने से लगा लो
अपने रूठे दिल को फिर से मना लो
अब कर ना सकूँगी और इंतजार
खड़ी हूँ लेकर मैं फूलो का हार
आज फिर उनको हमारा ख्याल आया
सपने में आकर चुपके से मुझे जगाया
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर गुरुवार, दिसंबर 20, 2007 0 टिप्पणियाँ
बुधवार, 19 दिसंबर 2007
ईद मुबारक……॥
आज ईद है( संयुक्त अरब अमीरात में)। मस्जिदों से आते आहवान के घोष, प्रार्थनाओं के दौर और शोरगुल ने ईद के माहौल की घोषणा कर दी। सभी मुस्लिम भाई-बहनों को ईद के शुभ अवसर पर ढेर सारी बधाई।
यहाँ पर तो ईद का माहौल पिछले दो-तीन दिनो से देखा जा सकता था। छुट्टियों का ख्याल आते ही सभी के लिये त्यौहार एक नई उमंग और खुशी लेकर आता है। सभी एक दूसरे से मिलने, घूमने-फिरने, बच्चों के लिये खेलने-कूदने और बाज़ार करने का भरपूर आनन्द उठाते है। इसका असर सड़को पर, शॉपिंग माल, समुद्र के किनारे, पार्कों में और रेस्टोरेन्ट में देखा जा सकता है। लोग रोज की दिनचर्या को एक किनारे रखकर इस अवसर को जीना चाहते है।
यू ए ई मे अब सभी सरकारी संस्थान रविवार को खुलेंगे। स्कूली बच्चे तो अब नये साल में ही स्कूल का रुख करना होगा। तब तक…………। दिसम्बर महीने मे यू ए ई में काफी चहल पहल है और रहने वाली है इसकी शुरुआत हुई राष्ट्रीय दिवस(2 दिसम्बर) से और अब ईद, फिर क्रिसमस, नया साल और साथ ही शॉपिंग त्यौहार की शुरुआत हो चुकी है।
कुल मिलाकर भरपूर मस्ती और आनन्द का माहौल।
आइये आप सब लोग भी इस खुशनूमा माहौल का आनन्द का उठाईये। हर चिंता को भूल जाइये और त्यौहार के मौसम में अपने आप को ढ़ाल लिजिये। इसके साथ ही आप सबको ईद, क्रिसमस और नये साल की बधाई।
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, दिसंबर 19, 2007 4 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 18 दिसंबर 2007
सोमवार, 17 दिसंबर 2007
हिन्दुस्तान हमारा है
हिन्दुस्तान कशमशा रहा है
भारत माँ के अंगो पर
ये कैसा नासुर फैल रहा
देव भूमि पर
कैसा तांडव हो रहा
रंगों की होली छोड़ कर लोग
क्यों खून की होली खेल रहे
एक हमारी संस्कृति सबकी
भारत माँ के बच्चे हम सब
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
फिर बना है दुश्मन क्यों भाई - भाई
आज माँ बिलख रही
अपनी ममता का हिसाब मांग रही
आओ अपनी सोच को
एक नया मोड़ दे
दुश्मनों को जबाब मुँह तोड़ दे
एक आवाज़ सबकी हो
हिन्दुस्तान हमारा है।
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, दिसंबर 17, 2007 1 टिप्पणियाँ
उनकी Yaad
उनकी याद्…………
क्षितिज की ओर निहारती नज़रे
शांत समुन्दर की मस्त लहरे
बरबस ही उनकी याद दिला जाती है
उनको भूलने की नाकाम कोशिश
फ़िर मन में एक आस जगा जाती है
मन फ़िर मन नहीं रहता
प्रेम में वशीभूत हो जाता है
आसमान की उँचाईया छूने लगता है
प्यार कि खुशबू महकने लगती है
सांसे कुछ तेज चलने लगती है
बंद आँखे प्यार का लम्हा जीने लगती है
होंठ उनके नाम से कंपकपाने लगते है
अहसास फिर से मचलने लगते है
उनकी याद आज भी
अपने करीब ले जाती है
-अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर सोमवार, दिसंबर 17, 2007 1 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007
shadi ke baad.......
(यू ए ई आने के पश्चात मेरे एक दो मित्रो की शादी हुई थी। पार्टी एक साथ ही आयोजित हुई थी। 1981 में बधाई संदेश इस रुप में दिया था मैंने)
शादी के बाद्………
एक से दो हुये आप, देता हूँ मुबारकबाद
बता रहा हूँ क्या करना तुम शादी के बाद
रात - दिन का नही, जीवन भर का है साथ
इसे निभाना प्रिय मित्रो , तुम शादी के बाद
एक दूसरे को समझना, ना करना तुम शक
इधर उधर झाँकना नही, तुम शादी के बाद
सुख - दुख जीवन का अंग है, इसमे रहना साथ
एक दूसरे का हाथ बटाना, तुम शादी के बाद
एक दूजे की खुशियों का रख्नना तुम ध्यान
हर कदम फूँक - फूँक रखना तुम शादी के बाद
सुन्दर - सुन्दर फूल खिलाना तुम अपने घर आँगन
छोटा परिवार सुखी परिवार, रखना ध्यान तुम शादी के बाद
- अस्तित्व, यु ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, दिसंबर 14, 2007 3 टिप्पणियाँ
कुछ MASTI KUCHH ........
कुछ मस्ती कुछ .........
कोइ हसीना आकर हमसे प्यार का इजहार तो करती
उसकी जवानी की कसम पुरानी मोहब्बत को सूली चढा देता
तुम बदल जाओगे सोचा भी ना था
यह तो अच्छा किया हमने खुद को बदल दिया
प्यार तुम्हे करते है इतना जितनी है मुझ में चाहत्
आया करो सपनो में भी किसी को ना हो इसकी आहट्
प्यार करना तो हमने सिखाया था तुमने
दिल तोड़कर जाना किसने सिखाया तुमको
हमारे दिल पर क्या गुजरती है जब तुम नहीं होती हमारे पास
किन्तु तुमसे मिलने की चाह बढा देता है जीने की आस
जिन्दगी के हसीन रंगो में रंगना ही पड़ता है
कुछ पाने के लिये कुछ खोना ही पड़ता है
जो कल था वो मेरा अपना था, जो आज हूँ वो तुम्हारा हूँ
खुशिया लेकर जो आयेगा वो कल हमारा होगा
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, दिसंबर 14, 2007 0 टिप्पणियाँ
बुधवार, 12 दिसंबर 2007
लेकिन मुस्कराती जिन्दगी
प्रतिद्वन्दता कराती जिन्दगी
उठाती - गिराती ज़िन्दगी
जलाती - बुझाती जिन्दगी
बनाती - बिगाड़ती जिन्दगी
रुठती - मनाती जिन्दगी
रुलाती लेकिन हंसाती जिन्दगी
इठलाती लेकिन खेलती जिन्दगी
चुपचाप लेकिन बोलती जिन्दगी
पूछती लेकिन उतर देती जिन्दगी
इन्कार - इकरार करती जिन्दगी
पास – फेल कराती जिन्दगी
मेल – बिछोह कराती जिन्दगी
प्यार – नफरत सिखाती जिन्दगी
हराती लेकिन सिखलाती जिन्दगी
रुकती लेकिन चलती जाती जिन्दगी
ढूँढती लेकिन महकती जिन्दगी
आंसू लाती लेकिन मुस्कराती जिन्दगी
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, दिसंबर 12, 2007 1 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 11 दिसंबर 2007
यूं ही…
यूं ही हम तुम देखा करते थे
प्यार कि बोली बोला करते थे
बस यूं ही एक दूसरे के होते चले गये
जिन्दगी यूं ही चलती रहे
एक दुसरे से यूं ही मिला करते थे
मिल के एक दूजे में खो जाया करते थे
तुम बिन ना मैं रह सकू ना तुम मेरे बिन
जिन्दगी यू ही चलती रहे
प्यार से हम यूं ही लड़ा करते थे
फिर एक दूसरे को मनाते थे
बस आपस में यूं ही खेलते रहे
जिन्दगी यू ही चलती रहे
नज़रे तुम्हारी बुलाती रहती थी
आवाज़ कानो में आती रहती थी
यूं ही मुझे बुलाया - सुनाया करे
जिन्दगी यू ही चलती रहे
प्यार का घर बनाया करते थे
जहॉ अपना उसमें बसाया करते थे
ऐसे ही प्यार की बातें करते रहे
जिन्दगी यू ही चलती रहे
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर मंगलवार, दिसंबर 11, 2007 3 टिप्पणियाँ
रविवार, 9 दिसंबर 2007
दूर जाना ना
प्यार करना तो डरना ना
डरना तो प्यार करना ना
खूबसूरत बन कर तो आना ना
आना तो दिल लिये बिना जाना ना
वादे तो झूठे करना ना
करना तो बिना निभाये जाना ना
मेरे दिल से खेल खेलना ना
खेलो तो रुठ कर जाना ना
दूर तुम मुझ से होना ना
होना तो प्यार भुलाना ना
दिल के बहुत करीब आना ना
आना तो दूर जाना ना
(सन् 18-5-84)
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर रविवार, दिसंबर 09, 2007 0 टिप्पणियाँ
शनिवार, 8 दिसंबर 2007
तुम हो !!!!!
मेरे हर सपनों का अर्थ तुम हो
मेरे हर पल का साथ तुम हो
मेरी दौलत, मेरा प्यार तुम हो
मेरी हर इच्छाओं कि पूरक तुम हो
मेरे जीवन का हर अंश तुम हो
मेरी भावनाओं का भंडार तुम हो
मेरी हर पसंद की पंसद तुम हो
मेरी हर बात का मतलब तुम हो
मेरे जीवन की हर तपस्या तुम हो
मेरे आंगन की महक तुम हो
मेरे हर उजाले की रोशनी तुम हो
मेरी हर प्रेरणा का स्त्रोत तुम हो
मेरी सफलता का “अस्तित्व” तुम हो
(25-4-85)
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शनिवार, दिसंबर 08, 2007 3 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 7 दिसंबर 2007
परिवर्तन
परिवर्तन संसार का नियम है। परन्तु क्या ये सत्य है? अगर सत्य है तो किस पहलू में? किस स्तर में? इसी कशमश में कुछ प्रशन अपने आप से पूछने में सोच को नया आयाम देते है?
परिवर्तन देश के विकास में, विज्ञान में,साहित्य में,आर्थिक दृष्टि से,सामाजिक कल्याण के संदर्भ में,खेल-कूद में या कहे की हर स्तर में अनिवार्य है। तभी हम प्रगतिशील कहलायेंगे। अपनी सोच में परिवर्तन लाना भी कहीं-कहीं उचित माना जाता है। विज्ञान और तकनीकी स्तर में तो हर रोज बदलाव आ रहे है। फैशन, फ़िल्म जगत और मनोरंजन जगत में भी इसमें पीछे नहीं। किसी क्षेत्र में तेजी से तो किसी में धीमी गति से।
कुछ मन में उठते सवाल
घर-परिवार में भी बदलाव आम सी बात हो गई। इक्का दुक्का परिवार ही संयुक्त परिवार कि श्रेणी मे आते है। लेकिन अब की पीढी अकेले ही अपनी मंजिल कि तलाश में अग्रसर हो रही है। क्या इस बदलाव से हम कुछ खो रहे है कुछ पाने की चाह में? क्या हम अपने संस्कारों में परिवर्तन चाहते है? क्या हम अपने वसूलो में बदलाव चाहते है? अगर आप सच बोलते है तो क्या परिवर्तन चाहते है? आप यदि सामाजिक कार्य करते है किसी लाभ की खातिर अपना रुख बदलना चाहेंगे। क्या आप प्रेम की अभिव्यक्ति बदलना चाहेंगे? व्यक्तिगत तौर से आप स्वंय में क्या बदलाव लाना चाहते है? क्या आप अपना द्दिष्टिकोण बदलना चाहते है? क्या आप अपने रिश्तों से मुंह मोड़ना चाहते है?
कुछ बदलाव ना चाहते हुए भी हमारे जीवन में आ जाते है। कुछ प्रश्न बिना उत्तर के ही रह जाते है। कभी-कभी उत्तर जानते हुये भी जबाब देना नही चाहते क्योंकि फिर हम खुद के भ्रमजाल में फ़स जायेंगे।
मेरे ख्याल में अपने आप में परिवर्तन अच्छाई हेतु, संस्कारों में बदलाव सामाजिक कल्याण हेतु एक अच्छा प्रयास होगा। सकारात्मक सोच के साथ किया हुआ हर परिवर्तन एक नई दिशा की ओर अच्छा प्रयास माना जायेगा।
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, दिसंबर 07, 2007 3 टिप्पणियाँ
जिन्दगी का चित्रण
बिन्दु-बिन्दु से बनता जिंदगी का चित्रण
सजता उसमें हमारी आशाओं का दर्पण
करती उसमें इच्छायें स्वच्छंद विचरण
रंग जाते उसमें भिन्न- भिन्न प्रकरण
अन्तरात्मा का है जिसमें विवरण
भावों का रहता है जिसमें समर्पण
कर देते है उसमें सब कुछ अर्पण
खूबसूरती का रहता जिसमें आकर्षण
समेटे हुये जो सच का आवरण
करता है खुशियों का वितरण
प्रेम की खुशबू फैलती छ्ण-छ्ण
बोल पड़ता है जिसमें कण-कण
-अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, दिसंबर 07, 2007 0 टिप्पणियाँ
बुधवार, 5 दिसंबर 2007
जब तुम आये!!
इंतजार में तुम्हारे
आंखो का पानी सूख चुका था
आज आंखे नम हो गई
जब तुम आये!!
दिल की धड़कन रुक सी जाती थी
जब याद तुमहरी आती थी
आज दिल कि धड़कन तेज हुई
जब तुम आये!!
चेहरा कुछ मुरझा सा जाता था
जब तस्वीर तुम्हारी औझल सी लगती थी
आज चेहरा मेरा गुलाल हुआ
जब तुम आये!!
लब मेरे थिरकते रह्ते थे
जब अह्सास तुम्हारा आता था
आज लब मेरे सहम गये
जब तुम आये!!
आसमां को निहारा करता था
जब तुम बिन तारे गिनता था
आज सारा जंहा मिल गया
जब तुम आये!!
- अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर बुधवार, दिसंबर 05, 2007 5 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 4 दिसंबर 2007
प्यार की राह में
प्रेम तपस्या में
लीन होकर जाना
कुछ हद तक
प्यार की भाषा को
और उसकी परिभाषा को
प्रेम एक
सम्बन्ध है
मेल है
दिल के तारो का
परस्पर स्नेह का
विचारो का
भावनाओ का
एक दूजे का
सहारा है प्यार
समर्पण और आदर का
सामंजय है प्यार
शायद इस दुनिया मे कई
प्रेम पुजारी है
फिर भी
प्रेमबन्धन मे पूर्ण नही
प्यार मोह्ब्बत के इस
मनचले खेल ने
"अस्तित्व" तुम्हें
बहुत कुछ सिखलाया है
और सिखा रहा है
अरे!!! ये किसकी आवाज है
जो चुपके से मेरे कानो मे
शहद घोल रही है और
अपने करीब बुला रही है
अच्छा मैं चला और कुछ
सीखने की चाह मे - प्यार की राह में।
-अस्तित्व
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर मंगलवार, दिसंबर 04, 2007 4 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 30 नवंबर 2007
सोचता था !!!!!!
सोचता था, कुछ करुंगा
अपने लिये
कुछ समाज के लिये
कुछ देश के लिये
क्या मालूम था ये
अरमान टूट जायेंगे
शीशे की तरह
ये जो पत्थर आया
जिसने अरमानो
के शीशे को चूर किया
कोसा पत्थर को
लेकिन ये तो पत्थर है
इसका क्या दोष
जिसने पत्थर फेंका
ना जाने उसके पास मेरे लिये
क्या अरमान थे
दोष तो मेरा है
जिसने पत्थर को
पास आने दिया
सोचा इस शीशे को
जोड दूँ जाकर
नया आकार दूँ इसे
परन्तु ये तो
बिल्कुल टूट चुका है
सोच रहा हूँ
इन टुकडो को कहीं
दूर डाल दूँ जाकर
नही तो ये मुझे, समाज और
देश को कष्ट पहुँचायेंगे
जिनके लिये मेरे
बहुत से अरमान थे
- अस्तित्व, यू ए ई
( ये पंक्तिया मैनें साल 1982 में लिखी थी। पहली बार इसे आज आप लोगों तक पहुँचा रहा हूँ। सोच रहा हूँ कि वो सारी रचनाये जिन्हें आयाम ना दे सका, धीरे-धीरे आप लोगो तक पहुँचाऊँ )
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, नवंबर 30, 2007 1 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 29 नवंबर 2007
~ आज का नेता ~
हर नेता बनना चाहता है अभिनेता
अभिनय करता जाता है आज का नेता
नेता बन कर बढाना चाहते है अपना खाता
भ्रष्टाचार से करते है नेता अपना समझौता
नेता का वादा जनता की समझ नहीं आता
फ़िर भी जनता ही चुनती है ऐसा नेता
अपने स्वार्थ के लिये दल है बद्ला जाता
अपने प्रतिद्वंद्वी से हाथ मिला लेता है नेता
ईमान की बाते करके बेईमान बन जाता है नेता
स्वाभिमान की बात भूल चुका है आज का नेता
जाति धर्म का सहारा लेता आज का सफ़ेदपोश नेता
जनता की सुध नहीं लेता है आज का मदहोश नेता
- अस्तित्व, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर गुरुवार, नवंबर 29, 2007 0 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 27 नवंबर 2007
~ फिर भी ना जाने क्यों ~ ( प्रेम का एक रुप यह भी)
प्रेम अर्थ है,
प्रेम समर्थ है,
फिर भी ना जाने क्यो व्यर्थ है॥
प्रेम आरजू है,
प्रेम तपस्या है,
फिर भी ना जाने क्यों निराशा है॥
प्रेम चेष्टा है,
प्रेम निष्ठा है,
फिर भी ना जाने क्यों रुठा है॥
प्रेम शक्ति है,
प्रेम अनुभूति है,
फिर भी ना जाने रुकी अभिव्यक्ति है॥
प्रेम पावन है,
प्रेम नादान है,
फिर भी ना जाने क्यो परेशान है॥
प्रेम शान है,
प्रेम ईमान है,
फिर भी ना जाने बना क्यों हैवान है॥
प्रेम गीत है,
प्रेम जीत है,
फिर भी ना जाने मिलती क्यों हार है॥
- अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर मंगलवार, नवंबर 27, 2007 2 टिप्पणियाँ
रविवार, 25 नवंबर 2007
अपने पहलू में आने दो !!!
तुम्हारे पहलू में आने को अब जी चाहता है,
तुम्हारे आंचल में छुप जाने को जी चाहता है,
तुम्हारे अंगो में मेरे अंग मिल जाना चाहते है,
तन और मन एक दूजे में खो जाना चाहते है,
तुम्हारे बदन की महकती खुश्बू पा लेने दो,
अपने पहलू में मुझे बस यूं ही खो जाने दो,
सांसो को मेरी सांसो में अब मिल जाने भी दो,
अपने होंठो का रसपान मुझे अब करने भी दो,
प्यार से अपनी आंखो में मुझे अब बसने भी दो,
सारे जंहा का नशा मुझे अब इनमें पाने भी दो,
तुम्हारे पहलू में आने को अब जी चाहता है,
तुम्हारे आंचल में छुप जाने को जी चाहता है।
- अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर रविवार, नवंबर 25, 2007 2 टिप्पणियाँ
शनिवार, 24 नवंबर 2007
तुम जो मिल गये !!!!!!
तुम मिले तो मेरे हालात बदलते चले गये
यूँ मिलते जुलते अहसास बदलते चले गये,
तन्हाई को मेरी हमसफ़र तुम सा मिल गया
जीने को मुझे सहारा अब तुम सा मिल गया
तुम्हारी झुकी पलकों के आशिक हम बन गये
चलते चलते इस राह मे हमराही हम बन गये
रात की खामोशी हो या हो दिन कि चंचलता
प्यार का अशियाना तुम्हारी बातो से है बनता
लेकर हाथो में हाथ हर पल रहता है तुम्हारा साथ
बन जाती है बिगडी बात जब रहती हो तुम साथ
- अस्तित्व, आबू दाबी, यू ए ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शनिवार, नवंबर 24, 2007 3 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 23 नवंबर 2007
~ तुम बिन ऐसे जिया तरसे ~
क्षितिज में जैसे जमीं आसमान का मिलन
आसमां में जैसे चांद और तारों का मिलन
धूप - छांव जैसा सुंदर खेल
सागर में जैसे नदिया का मेल
फूलो से जैसे खुशबू महके
आग से जैसे शोले दहके
ओस के जैसी छूती कोमलता
झरने के जैसी बहती चन्चलता
दिये की जैसी रोशनी बिखरती
ज्वार - भाटा जैसी लहरे उठती
बरखा की रिमझिम बूंदे बरसे
तुम बिन ऐसे जिया तरसे
अस्तित्व, आबू दाबी
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, नवंबर 23, 2007 0 टिप्पणियाँ
~ रचनाकर के रंग ~
जीवन की संरचना में,
कौन है रचनाकर ?
कैसे इस रचना को
रच देता है रचियेता ।
हर रंग से वशीभूत होकर,
भर देता है रंग रचियेता
हर एक भिन्न - भिन्न है,
रंगो का मिश्रण भी अलग है,
सबके जीवन में रंग अलग है,
हर रंग का आकर्षण अलग है,
जीवन की संरचना में,
कौन है रचनाकर ?
रचियेता की रचना में
रंग की अखरता में,
रंग की सरलता में,
रंग की सहजता में,
रंग की विभिन्नता में,
रंग की एकता में,
रंग की भावना में,
रंग की ताकत में,
बदल जाता है,
हर रंग का मतलब ।
जीवन की संरचना में,
कौन है रचनाकर ?
धूप छांव के रंगो में,
इन्द्रधनुष बन जाते है ।
रंग से रंग मिल जाते है,
जीवन से जीवन मिल जाते है ।
रचनेवाला छोड़ जाता है,
हर रंग का रंग जीवन भर ।
जीवन की संरचना में,
कौन है रचनाकर ?
अस्तित्व, आबु दाबी, यु ऐ ई
प्रस्तुतकर्ता अस्तित्व पर शुक्रवार, नवंबर 23, 2007 1 टिप्पणियाँ